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________________ क्षय कहलाता है और उनका देशघाती स्पर्धकों के रूप से अवस्थान होना उपशम है। उन्हीं क्षय और उपशम से संयुक्त उदय क्षयोपशम कहलाता है। कर्मों के क्षय और उपशम से उत्पन्न गुण क्षायोपशमिक कहलाता है। बौद्ध लोग पदार्थ को ज्ञान का कारण होने से परिच्छेद्य अर्थात् जानने योग्य ज्ञेय कहते हैं, आचार्य उनके मत का निराकरण करते हैं - कारणस्य च परिच्छेद्यत्वे करणादिना व्यभिचारः॥10॥ सूत्रान्वय : कारणस्य = कारण को, च = और, परिच्छेद्यत्वे = ज्ञान का विषय मानने पर, करणादिना = इन्द्रियादि से, व्यभिचारः = असंगत दोष। सूत्रार्थ : कारण को ज्ञान का विषय मानने पर इन्द्रियादि से व्यभिचार (असंगत) दोष आता है, क्योंकि इन्द्रिय ज्ञान की कारण तो हैं परन्तु विषय नहीं हैं अर्थात् इन्द्रियाँ अपने आपको नहीं जानती हैं। संस्कृतार्थ : यद्यत्कारणं तत्तत्प्रमेयम् इति व्याप्ति स्वीकारे तु इन्द्रियादिना व्यभिचारः संजायेत / चक्षुरादीनां ज्ञानम्प्रति कारणत्वेऽपि परिच्छेद्यूत्वाभावात् / टीकार्थ : जो-जो ज्ञान का कारण है वह-वह ज्ञान का विषय है। इस प्रकार व्याप्ति स्वीकार करने पर इन्द्रियादि के द्वारा (साथ) व्यभिचार (असंगत) नाम का दोष आएगा। चक्षु आदि इन्द्रियों का ज्ञान के प्रति कारणपना होने पर भी ज्ञान के विषय का अभाव होने से अर्थात् अपने आपको नही जानने से। 136. सूत्र का अभिप्राय रूप अर्थ क्या है ? करणादि (इन्द्रियादि) ज्ञान के कारण हैं अतः परिच्छेद (ज्ञेय) हैं, इसलिए इन्द्रियों से व्यभिचार सिद्ध है। 137. उक्त सूत्र में बौद्धों के अनुसार साध्य और हेतु क्या है ? कारण होना - हेतु। विषय होना - साध्य। अतः - बौद्ध लोग मानते हैं कि जो-जो ज्ञान का कारण है, वह-वह ज्ञान का विषय है। इस प्रकार के अनुमान में इन्द्रियों में हेतु तो रह गया। परन्तु साध्यत्व विषय होना 47
SR No.007147
Book TitleParikshamukham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandi Aacharya, Vivekanandsagar, Sandip
PublisherAnekant Gyanmandir Shodh Samsthan
Publication Year2011
Total Pages22
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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