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________________ नोट : अतजन्यता उपलक्षण रूप है, अतः उससे अतदाकार का भी ग्रहण करना है। संस्कृतार्थ : स्वानि च तानि आवरणानि स्वावरणानि, तेषां क्षयः उदयाभावः, तेषामेव सदवस्थारूपः उपशमः, तावेव लक्षणं यस्याः योग्यतायाः, तया हेतुभूतया प्रतिनियतमर्थं व्यवस्थापयति (विषयी करोति) प्रत्यक्षमिति शेषः। निष्कर्षश्चायम्-कल्पयित्वापि तदुत्पत्तिं, ताद्रूप्यं, तदध्यवसायं च प्रतिनियतार्थव्यवस्थापनार्थं योग्यतावश्यमभ्युपगन्तव्या। टीकार्थ : अपने ज्ञान के रोकने वाले आवरणों को स्वावरण कहते हैं (उदय प्राप्त) उन आवरण कर्मों के (वर्तमान काल में) उदयाभाव को क्षय कहते हैं और (अनुदय प्राप्त) उन्हीं कर्मों सत्ता में अवस्थित रहने को उपशम कहते हैं ये दोनों ही जिसके लक्षण हैं ऐसी योग्यता के द्वारा प्रत्यक्ष ज्ञान प्रतिनियत अर्थ की व्यवस्था करता है यहाँ प्रत्यक्ष यह पद शेष है (सूत्र में नहीं कहा गया है, अतः ऊपर से अध्याहार कर लेना) इसका यह निष्कर्ष है कि उक्त प्रकार से तदुत्पत्ति (ज्ञान का पदार्थ से उत्पन्न होना) ताद्रूप्य (पदार्थ के आकार होना) और तदध्यवसाय (उसी पदार्थ को जानना) यद्यपि प्रतिनियत अर्थ के जानने में कारण रूप से नियामक नहीं है, तथापि दुराग्रह वश कल्पना करके भी अर्थात् उन तीनों को मान करके भी आप लोगों को योग्यता अवश्य ही स्वीकार करना चाहिए। 133. सूत्र में 'हि' शब्द किस अर्थ में है ? 'हि'शब्द 'यस्मात्' के अर्थ में है। अतः योग्यता वस्तु ज्ञान की व्यवस्थापक 134. प्रतिनियत व्यवस्था किसे कहते हैं ? इस ज्ञान का यह पदार्थ ही विषय है, अन्य नहीं ऐसी व्यवस्था को प्रतिनियत व्यवस्था कहते हैं। 135. क्षयोपशम किसे कहते हैं ? सर्वघाति स्पर्धक अनन्त गुणहीन होकर और देशघाती स्पर्धकों में परिणत होकर उदय में आते हैं, उन सर्वघाती स्पर्धकों का अनन्त गुण हीनत्व ही 46
SR No.007147
Book TitleParikshamukham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandi Aacharya, Vivekanandsagar, Sandip
PublisherAnekant Gyanmandir Shodh Samsthan
Publication Year2011
Total Pages22
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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