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________________ 130. उपलक्षण से किसे ग्रहण किया गया है ? अतज्जन्यता के समान अतदाकार को भी ग्रहण किया गया है। 131. सूत्र का अभिप्राय रूप अर्थ क्या है ? अर्थ से नहीं उत्पन्न हुआ भी ज्ञान पदार्थ का ज्ञायक होता है। यहाँ पर अतज्जन्यता उपलक्षण रूप है, अतः उससे अतदाकार का भी ग्रहण कर लेन चाहिए। अतज्जन्यता और अतदाकारता इन दोनों के विषय में प्रदीप का दृष्टान्त समान है। जैसे - दीपक घट-पटादि पदार्थों से उत्पन्न नहीं होकर और उनके आकार का नहीं होकर के भी उनका प्रकाशक है वैसे ही ज्ञान भी घटादि पदार्थों से उत्पन्न नहीं होकर और उनके आकार का नहीं होकर भी उन पदार्थों को जानता है। 132. आगे नवमाँ सूत्र किसलिए कहा जा रहा है ? / बौद्धों की शंका निवारण हेतु यह सूत्र कहा जा रहा है, शंका इस प्रकार है आप जैन लोग तदुत्पत्ति और तदाकार को मानते नहीं हो तो फिर अमुक ज्ञान अमुक पदार्थ को ही जाने, इसका कोई नियामक कारण नहीं रहता फिर तो प्रत्येक ज्ञान विश्व के त्रिकालवर्ती और त्रिजगदव्यापी पदार्थों को जानने वाला हो जायेगा। बौद्धों की ऐसी शंका होने पर आचार्य भगवन् उत्तर देते हुए कहते हैं। अतज्जन्य और अतदाकार होने पर भी प्रतिनियतार्थ जानने का कारण स्वावरणक्षयोपशम लक्षणयोग्यतया हि प्रतिनियतमर्थं व्यवस्थापयति प्रत्यक्षमिति शेषः॥9॥ सूत्रान्वय : स्वावरण = अपने आवरण, क्षयोपशम = क्षयोपशम लक्षण वाली, योग्यतया = योग्यता से, प्रत्यक्षम् = प्रत्यक्ष प्रमाण, प्रतिनियतमर्थम् = प्रतिनियत पदार्थों के जानने की, व्यवस्थापयति = व्यवस्था करता है। सूत्रार्थ : अपने आवरण कर्म के क्षयोपशम लक्षण वाली योग्यता से प्रत्यक्ष प्रमाण प्रतिनियत पदार्थों के जानने की व्यवस्था करता है। 45
SR No.007147
Book TitleParikshamukham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandi Aacharya, Vivekanandsagar, Sandip
PublisherAnekant Gyanmandir Shodh Samsthan
Publication Year2011
Total Pages22
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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