________________ उत्तर देते हुए आठवाँ सूत्र कहते हैं - अतज्जन्यमपि तत्प्रकाशकं प्रदीपवत्॥8॥ सूत्रान्वय : अतज्जन्यम् = अर्थ से नहीं उत्पन्न हुआ, अपि=भी, तत् = वह ज्ञान अर्थ का, प्रकाशकं = प्रकाशक है, प्रदीपवत् = दीपक के समान। सूत्रार्थ : अपि से नहीं उत्पन्न हो के भी ज्ञान अर्थ का प्रकाशक होता है, दीपक के समान। नोट : अतज्जन्यता उपलक्षण रूप है, अतः उससे अतदाकार का भी ग्रहण करना है। संस्कृतार्थ : ननु विज्ञानम् अर्थजन्यं सत् अर्थस्य ग्राहकं भवति तदुत्पत्तिमन्तरेणविषयं प्रति नियमायोगात् / इति चेन्न-घटाद्यजन्यस्यापि प्रदीपादेः घटादेः प्रकाशकत्ववत् अर्थाजन्यस्यापि ज्ञानस्यार्थप्रकाशकत्वाभ्युपगमात्। एवमेव तदाकारत्वात् तत्प्रकाशकत्वमित्यप्ययुक्तम् अतदाकारस्यापि प्रदीपादेः घटादिप्रकाशकत्वावलोकनात्। टीकार्थे : बौद्ध मानते हैं कि ज्ञान पदार्थ से पैदा होता हुआ पदार्थ का ग्राहक होता है, क्योंकि तदुत्पत्ति के बिना विषय के प्रति कोई नियम नहीं होने के कारण ऐसा कहते हो तो ठीक नहीं है। घटादि से उत्पन्न नहीं हुए दीपक आदि को घटादि का प्रकाशक होने के समान पदार्थ से उत्पन्न नहीं होने वाले ज्ञान को भी पदार्थ का प्रकाशक माना जाने से दीपक आदि घट के आकार को नहीं धारण करके भी घट को प्रकाशित करता है ऐसा देखा जाता है। 127. उपलक्षण किसे कहते हैं ? स्वस्य स्वसदृशस्य च ग्राहकं इति उपलक्षणम् - अपने और अपने सदृश का ग्रहण करना उपलक्षण है। 128. अतज्जन्य से क्या तात्पर्य है ? उससे नहीं उत्पन्न हुआ। 129. तत्प्रकाशक से क्या तात्पर्य है ? पदार्थ का ज्ञायक होता है। 44