________________ सूत्रान्वय : न = नहीं, अर्थ = पदार्थ, आलोक = प्रकाश, कारणं = कारण, परिच्छेद्यत्वात् = ज्ञान के विषय होने से, तमोवत् = अंधकार के समान। सूत्रार्थ : पदार्थ और प्रकाश ये दोनों सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष के कारण नहीं हैं क्योंकि ज्ञान के विषय होने से (ज्ञेय) अंधकार के समान। संस्कृतार्थ : अर्थश्च आलोकश्चेति अर्थालोकौ पदार्थप्रकाशावित्यर्थः। कारणं न ज्ञानजनकौ न स्तः / परिच्छेत्तुं योग्यौ परिच्छेद्यौ तयोर्भावस्तत्त्वं, तस्मात् परिच्छेद्यत्वात् ज्ञेयत्वादित्यर्थः / अर्थालोकाविति धर्मिनिर्देशः / कारणं न भवतीति साध्यम्। परिच्छेद्यत्वादिति हेतुः। तमोवदिति दृष्टान्तः। तथा च व्याप्तिः यच्च परिच्छेद्यं तन्न ज्ञानं प्रतिकारणं, यथान्धकारम्। परिच्छेद्यौ चार्थालोकौ, तस्मात् ज्ञानं प्रति कारणं न भवतः। टीकार्थ : अर्थश्च आलोकश्च इति अर्थालोको (पदार्थ-प्रकाशौ इति अर्थः) यहाँ द्वन्द्व समास हैं। पदार्थ और प्रकाश यह अर्थ है कारण नहीं हैं अर्थात् ज्ञान के जनक नहीं हैं। जानने के योग्य सो परिच्छेद्य और उनका भाव परिच्छेद्यत्व (जानना पना) उससे ज्ञान के विषय होने से या ज्ञेय होने से यह अर्थ है। धर्मी-अर्थ और प्रकाश, हेतु-ज्ञान के विषय होने से, साध्य- कारण नहीं होता है, दृष्टान्त-अंधकार के समान, व्याप्ति-जो ज्ञान का विषय होता है, वह ज्ञान का कारण नहीं होता, जैसे अंधकार / अर्थात् पदार्थ और प्रकाश ज्ञान के विषय होने से ज्ञान के प्रति कारण नहीं होते हैं। 118. पदार्थ और प्रकाश ज्ञान के कारण क्यों नहीं हैं ? क्योंकि ज्ञान के विषय होने से। जो-जो ज्ञान का विषय होता है, वह ज्ञान का कारण भी नहीं होता। 119. पदार्थ को ज्ञान का कारण मानने में क्या दोष आयेगा ? ऐसा मानने पर विद्यमान पदार्थ का ही ज्ञान होगा और जो उत्पन्न ही नहीं हुए तथा नष्ट हो गए हैं। उनका ज्ञान नहीं होगा, क्योंकि जो नष्ट और अनुत्पन्न पदार्थ इस समय विद्यमान ही नहीं हैं, वे जानने में कारण कैसे हो सकते हैं। 120. प्रकाश को ज्ञान का कारण मानने में क्या दोष आयेगा ? 41