________________ अन्य ज्ञान के व्यवधान से रहित जो निर्मल प्रतिभासपना है, उसे वैशद्य कहते हैं और दूसरे की सहायता के बिना होने पर पदार्थ के आकार और वर्ण आदि की विशेषता से होने वाला प्रतिभास वैशद्य है। परन्तु विशदता, निर्मलता, स्पष्टता, विशदता के ही पर्यायवाची नाम हैं। 109. प्रतीत्यन्तर किसे कहते हैं ? प्रतीति नाम ज्ञान का है, एक प्रतीति से भिन्न दूसरी प्रतीति को प्रतीत्यन्तर कहते हैं। 110. व्यवधान किसे कहते हैं ? अंतराल को व्यवधान कहते हैं। 111. परोक्षपना कहाँ माना जाता है ? जहाँ पर विषय और विषयी में भेद होने पर व्यवधान होता है, वहाँ परोक्षपना है। 112. सूत्र का अभिप्राय रूप अर्थ क्या है ? केवल प्रतीत्यंतर के अव्यवधान से होने वाले ज्ञान का नाम ही वैशद्य नहीं है। अपितु वस्तु के वर्ण, गंधादि तथा संस्थान (आकार-प्रकार) आदि विशेषताओं के द्वारा होने वाले विशिष्ट प्रतिभास को वैशद्य कहते हैं। वह प्रत्यक्ष मुख्य और संव्यवहार के भेद से दो प्रकार का है, ऐसा अभिप्राय मन में रखकर आचार्य भगवन् पहले सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष की उत्पत्ति का कारण और लक्षण कहते हैं। सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष का कारण और लक्षण - इन्द्रियानिन्द्रय निमित्तं देशतः सांव्यवहारिकम्॥5॥ सूत्रान्वय : इन्द्रिय = इन्द्रिय, अनिन्द्रिय = मन के, निमित्तं = निमित्त से, देशतः = एक देश, सांव्यवहारिकम् = सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष है। सूत्रार्थ : इन्द्रिय और मन के निमित्त से होने वाले एक देश विशद ज्ञान को सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष कहते हैं। संस्कृतार्थ : यज्ज्ञानं देशतो विशदम् (ईषन्निर्मलम्) भवति, तथेन्द्रियाणां 39