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________________ 102. सूत्र नं. 3 में आचार्य भगवन् क्या कहना चाहते हैं ? सूत्र नं. तीन में प्रथम प्रमाण प्रत्यक्ष का लक्ष्ण कहते हैं। प्रत्यक्ष के स्वरूप निरूपण के लिए कहते हैं - विशदं प्रत्यक्षम्॥3॥ सूत्रान्वय : विशदं = निर्मल (स्पष्ट), प्रत्यक्षं = प्रत्यक्ष, ज्ञानं = ज्ञान को। सूत्रार्थ : विशद अर्थात् निर्मल और स्पष्ट ज्ञान को प्रत्यक्ष कहते हैं। संस्कृतार्थ : यस्य ज्ञानस्य प्रतिभासो निर्मलो विद्यते तत्प्रत्यक्षं प्रोच्यते। तथा चोक्तं श्री विद्यानन्दिस्वामिना :- निर्मलप्रतिभासत्वमेव स्पष्टत्वमिति। प्रतिपादितं च श्री भट्टाकलंकदेवैः प्रत्यक्षलक्षणं प्राहुः स्पष्टं साकारमंजसा इति। तथा चानुमानं -प्रत्यक्षं विशदज्ञानात्मकमेव, प्रत्यक्षत्वात्, परोक्षवत् / प्रत्यक्षमिति धर्मिनिर्देशः विशदज्ञानात्मकं साध्यं, प्रत्यक्षत्वादिति हेतुः परोक्षवदिति दृष्टान्तः / तथाहि - यन्न विशदज्ञानात्मकं तन्न प्रत्यक्षं, यथा परोक्षं, प्रत्यक्षं च विवादापन्नं, तस्माद्विशदज्ञानात्मकमिति। टीकार्थ : जिस ज्ञान का प्रतिभास निर्मल होता है उसे प्रत्यक्ष कहते हैं और उसी प्रकार श्री विद्यानन्दि स्वामी के द्वारा कहा गया है - निर्मल प्रतिभासपना ही स्पष्ट है, प्रत्यक्ष है और श्री भट्टाकलंक देव के द्वारा प्रत्यक्ष के लक्षण को कहा गया है, स्पष्ट साकार मञ्जसा (स्पष्ट, साकार, निर्मल) इस प्रकार और अनुमान इस प्रकार है। प्रत्यक्ष विशदज्ञान स्वरूप ही है, प्रत्यक्ष होने से, परोक्ष के समान / इस प्रकार प्रत्यक्षधर्मी का निर्देश है विशदज्ञानपना साध्य है, प्रत्यक्ष होने से हेतु, परोक्ष के समान दृष्टान्त है। इसलिए जो विशदज्ञानात्मक नहीं है वह प्रत्यक्ष नहीं है जैसे परोक्ष, प्रत्यक्ष विवादापन्न है इसलिए वह विशदंज्ञानात्मक है। विशेष : पक्ष-प्रत्यक्ष, हेतु-प्रत्यक्षपना, साध्य-ज्ञान की विशदता, दृष्टान्त-परोक्ष के समान, उपनय-विवादापन्न ज्ञान प्रत्यक्ष है, निगमन - इसलिए वह विशदज्ञानात्मक है। 37
SR No.007147
Book TitleParikshamukham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandi Aacharya, Vivekanandsagar, Sandip
PublisherAnekant Gyanmandir Shodh Samsthan
Publication Year2011
Total Pages22
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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