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________________ नोट : सूत्र वाक्य उपस्कार सहित होते हैं, उनका ठीक अर्थ जानने के जिए तत्संबंद्ध और तत्सूचित अर्थ का ऊपर से अध्याहार करना चाहिए। यहाँ अभ्यास एवं अनभ्यास दशा का अध्याहार किया गया है। संस्कृतार्थ : तस्य प्रमाणस्य प्रामाण्यस्य (सत्यतायाः वास्तविकतायाः यथावद्विज्ञताया वा) निर्णयः प्रकारद्वयेन जायते। अभ्यासदशायामन्यपदार्थ सहायतां बिना स्वतः अनभ्यासदशायांचान्यकारणानां सहायतया। टीकार्थ : उस प्रमाण की प्रमाणता (सच्चाई वास्तविकता या पदार्थ का यथावत् जानने का निर्णय) दो प्रकार से होता है। अभ्यासदशा में अन्य पदार्थ की सहायता बिना अपने आप और अनभ्यासदशा में अन्य कारणों की सहायता से। 85. अभ्यासदशा और अनभ्यास दशा किसे कहते हैं ? परिचित अवस्था को अभ्यासदशा एवं अपरिचित दशा को अनभ्यास . दशा कहते हैं। 86. परत: प्रमाणता कहने का तात्पर्य क्या है ? उत्पत्ति में अन्तरंग कारण ज्ञानावरण का क्षयोपशम होने पर भी बाह्य कारण इन्द्रियादिक के निर्दोष होने पर ही नवीन प्रमाणता रूप कार्य उत्पन्न होता है अन्यथा नहीं। अतः उत्पत्ति में परतः होती है। 87. स्वतः प्रमाणता कहने का तात्पर्य क्या है ? विषय के जानने रूप और प्रवृत्ति रूप प्रमाण के कार्य में अभ्यास दशा की अपेक्षा तो प्रमाणता स्वतः बाह्य कारण के बिना अपने आप ही होती है। 88. उपस्कार किसे कहते हैं ? शब्द के द्वारा दूसरे शब्द का मिलना उपस्कार कहलाता है। 89. प्रथम परिच्छेद में किसका कथन किया गया है ? प्रथम परिच्छेद में प्रमाण की स्वरूप विप्रतिपत्ति का निराकरण करते हुए प्रमाण के स्वरूप को अति संक्षेप में कहा गया है। इति प्रथमः परिच्छेदः समाप्तः (इस प्रकार प्रथम परिच्छेद समाप्त हुआ) 34
SR No.007147
Book TitleParikshamukham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandi Aacharya, Vivekanandsagar, Sandip
PublisherAnekant Gyanmandir Shodh Samsthan
Publication Year2011
Total Pages22
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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