________________ 70. सूत्र नं. 11 में किसका कथन किया जा रहा है ? स्वप्रतीति की पुष्टि का। शब्दोच्चारण बिना भी स्वप्रतीति की पुष्टि - को वा तत्प्रतिभासिनमर्थमध्यक्षमिच्छेस्तदेव तथा नेच्छेत् // 11 // सूत्रान्वय : कः = कौन, वा = लौकिक (परीक्षक), तत् = ज्ञान से, प्रतिभासिनम् =प्रतिभासित हुए, अर्थम् = पदार्थ को, अध्यक्षम् = प्रत्यक्ष, इच्छत् = मानता हुआ। तत् = स्वयं ज्ञान को। एव = ही, तथा = प्रत्यक्षपने से, न = नहीं, इच्छेत = स्वीकार करे। . सूत्रार्थ : कौन ऐसा पुरुष है जो ज्ञान से प्रतिभासित हुए पदार्थ को प्रत्यक्ष मानता हुआ भी स्वयं ज्ञान को ही प्रत्यक्ष न माने / अपितु मानेगा ही। संस्कृतार्थ : यदा ज्ञानं परपदार्थं प्रत्यक्षं करोति तदा स्वस्य प्रत्यक्षमपि तस्यावश्यं स्यात् / यदि च स्वं न जानीयात्तर्हि परपदार्थान् ज्ञातुमपि न शक्नुयात् / यथा घटादयः स्वं न जानन्त्यतः परमपि न जानन्ति / इति स्थितौ को लौकिक: परीक्षको वा जनो विद्यते यो ज्ञानप्रतिभासिनमर्थं प्रत्यक्षं स्वीकुर्वन् स्वयं ज्ञानं प्रत्यक्षं नो स्वीकुर्यात् ? / टीकार्थ : जब ज्ञान दूसरे का प्रत्यक्ष करता है तब अपना भी प्रत्यक्ष करता होगा। यदि वह अपने को नहीं जानता होता तो दूसरे पदार्थों को भी नहीं जान सकता। जैसे - घट (घड़ा) आदि अपने आपको नहीं जानते इसलिए दूसरों को भी नहीं जानते। ऐसा कौन लौकिक या परीक्षक पुरुष है जो ज्ञान से प्रतिभाषित हुए पदार्थ को तो प्रत्यक्ष ज्ञान का विषय माने परन्तु स्वयं ज्ञान को प्रत्यक्ष न माने। अर्थात् सभी मानेंगे। 71. युक्ति किसे कहते हैं ? प्रमाणनयात्मको युक्तिः - प्रमाण नयात्मक कथन को युक्ति कहते हैं। 72. ज्ञान का मुख्य धर्म क्या है ? प्रत्यक्षपना। 73. ज्ञान का विषय क्या है ? 31