________________ टीकार्थ : प्रमाण के द्वारा जैसे घट-पट आदि रूप कर्म का बोध होता है उस प्रकार ही कर्ता (मैं) करण का (अपने द्वारा) और क्रिया (जानता हूँ) का भी बोध होता है, अर्थात् प्रमाण के द्वारा जैसे-मैं घड़े-कपड़े आदि को जानता हूँ ऐसी प्रतीति होती है। उसी प्रकार कर्ता, करण और क्रिया के प्रति भी इन कर्मादिक को भी जानता हूँ ऐसी प्रतीति होती है, इसमें कोई बाधा नहीं है अनुभव सिद्ध है। 60. कर्म किसे कहते हैं ? __ ज्ञान की विषयभूत वस्तु कर्म कहलाती है एवं ज्ञप्तिरूप क्रिया के द्वारा जो कुछ भी जाना जाता है उसे कर्म कहते हैं। 61. कर्ता किसे कहते हैं ? किसी भी वस्तु को जानने वाली आत्मा कर्ता कहलाती है। 62. ज्ञप्ति किसे कहते हैं ? जानने रूप क्रिया को ज्ञप्ति कहते हैं। 63. करण किसे कहते हैं ? जिसके द्वारा जाना जाता है ऐसा प्रमाण रूप ज्ञान करण कहलाता है। 64. प्रमिति किसे कहते हैं ? प्रमाण के फल को प्रमिति कहते हैं। 65. सूत्र के अंत में 'प्रतीतेः' यहाँ पंचमी विभक्ति का प्रयोग क्यों किया गया है ? हेतु अर्थ में। 66. सूत्र का स्पष्ट अर्थ क्या है ? जैसे ज्ञान अपने विषयभूत पदार्थ को जानता है उसी प्रकार वह कर्ता, करण और क्रिया को भी जानता है। 67. एक ही ज्ञान में कर्ता, कर्म आदि अनेक कारकों की प्रतीति कैसे संभव है ? अनेकान्त होने से। 29