________________ स्व और पर का व्यवसाय (ज्ञान) होता है। इसलिए प्रमाण को स्व और पर का निश्चायक कहा है। 55. प्रस्तुत सूत्र में कर्ता, कर्म, करण और क्रिया क्या है ? __ अहम् (मैं) कर्ता, आत्मना (अपने आपके द्वारा) करण घटम् (घड़ा) - कर्म वेद्मि (जानता हूँ)- क्रिया। 56. सूत्र का स्पष्ट अर्थ क्या है ? जैसे - जानने वाला पुरुष अपने - आपके द्वारा घट को जानता है, वैसे ही अपने आपको भी जानता है। 57. ज्ञान केवल पदार्थ को ही जानता है, अपने आपको नहीं जानता है। ऐसी मान्यता किनकी है ? नैयायिक मत वालों की। 58. कर्ता और कर्म की ही प्रतीति होती है ऐसा कौन मानते हैं ? भाट्ट मतानुयायी। 59. नवमाँ सूत्र किसलिए कहा गया है ? उक्त वादियों के मत प्रतीति बाधित हैं, यह दिखलाने के लिए अर्थात् पर व्यवसाय मात्र का खण्डन करने के लिए कहा गया है। कर्मवत्कर्तृ करणक्रिया प्रतीतेः॥9॥ सूत्रान्वय : कर्मवत् = कर्म के समान, कर्तृ = कर्ता / करण = करण, क्रिया = क्रिया, प्रतीतेः = ज्ञान होने से। सूत्रार्थ : कर्म के समान कर्ता, करण और क्रिया की भी प्रतीति होती संस्कृतार्थ : प्रमाणेन यथा घटपटादि रूपस्य कर्मणो बोधो जायते तथैव कर्तुः करणस्य क्रियाया वा बोधो जायते। अर्थात् प्रमाणेन यथा अहं घटपटादि (कर्म) जाने इति प्रतीति जायते तथा कर्त करणक्रियाः प्रत्यपि अहं कादिकं जाने इति प्रतीति जायते, नात्र काचिद् बाधा, अनुभव सिद्धं विद्यते। 28