________________ टा तज्ज्ञानविषयभूतानां तत्तत्पदार्थानां ज्ञानमपि अस्माकमवश्यं जायते। तथा यदात्मानं प्रति लक्ष्यं जायते तदाऽऽत्मा किम्वस्तु विद्यते एतस्यापि ज्ञानमवश्यं जायते। टीकार्थ : जिस प्रकार जब घट (घड़ा) पट (कपड़ा) इत्यादि शब्दों का हमें ज्ञान होता है तब उस ज्ञान के विषयभूत उन-उन पदार्थों का ज्ञान भी हमें अवश्य होता है। उसी प्रकार जब आत्मा के प्रति (की ओर) लक्ष्य जाता है, तब आत्मा क्या वस्तु है इसका भी ज्ञान अवश्य हो जाता है। 53. सूत्र का स्पष्ट अर्थ क्या है ? जिस प्रकार पदार्थ के अभिमुख होकर उसके जानने को अर्थव्यवसाय कहते हैं उसी प्रकार स्व अर्थात् अपने आपके अभिमुख होकर जो अपने आपका प्रतिभास होता है। अर्थात् आत्मप्रतीति या आत्मनिश्चय होता है वह स्वव्यवसाय कहलाता है। 54. आठवें सूत्र में किसका कथन है ? पदार्थ को जानने के समय होने वाली प्रतीति का कथन / पूर्वोक्त कथन को एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट करते हैं। घटमहमात्मना वेद्मि॥8॥ सूत्रान्वय : घटम् = घड़े को, अहम् = मैं, आत्मना = अपने आपके द्वारा, वेद्मि = जानता हूँ। सूत्रार्थ : मैं घड़े को अपने आपके द्वारा जानता हूँ। संस्कृतार्थ : घटमहमात्मना वेद्मि! इति प्रतीतौ ‘अहम्' 'आत्मना' वेति पदाभ्यां स्वव्यवसायं जायते तथा घटम्पदेन परपदार्थ बोधो जायते। तथैव प्रमाणेन सर्वत्र स्वस्य परस्य वा बोधो जायते / अतएव प्रमाणं स्वपरनिश्चायक निगदितम् / / 8 / / टीकार्थ : घड़े को मैं अपने द्वारा जानता हूँ, इस प्रकार ज्ञान में अहम् (मैं) आत्मना (अपने आपके द्वारा) इन दो पदों से स्व का निश्चय होता है और घटम् पद से पर पदार्थ का ज्ञान होता है। इसी प्रकार प्रमाण के द्वारा सर्वत्र 27