________________ क्योंकि उसके विषय में समारोप उत्पन्न हो गया है। स्वोन्मुखतया प्रतिभासनं स्वस्य व्यवसायः॥6॥ सूत्रान्वय : स्व = अपने आपके, उन्मुखतया = जानने से अभिमुख। स्वस्य = अपने आपका, व्यवसायः = निश्चायक। सूत्रार्थ : स्वोन्मुख रूप से अपने आपको जानना स्वव्यवसाय है। संस्कृतार्थ : स्वस्योन्मुखतया प्रतिभासनं स्वव्यवसायो निगद्यते / अत्र अहमात्मानं जाने इति प्रतीतिः जायते। टीकार्थ : अपने आपके अनुभव से होने वाली आत्म प्रतीति को स्वव्यवसाय कहते हैं। यहाँ 'मैं' अपने आपको जानता हूँ इस प्रकार की प्रतीति होती है। 49. स्वोन्मुखता किसे कहते है ? अपने आपको जानने के अभिमुख होना स्वोन्मुखता है। 50. प्रतिभास-किसे कहते हैं ? आत्म प्रतीति को प्रतिभास कहते हैं। 51. स्वव्यवसाय किसे कहते हैं ? स्वानुभवरूप से आत्मप्रतीति होती है वह स्वव्यवसाय कहलाता है अर्थात् अपने आपको जानना स्वव्यवसाय है। 52. आत्मा किसे कहते हैं ? अक्षणोति व्याप्नोति जानातीत्यक्ष आत्मा जो व्याप्त होकर जानता है। स्वव्यवसाय का दृष्टान्त सूत्र में कहते हैं - अर्थस्येव तदुन्मुखतया॥7॥ सूत्रान्वय : अर्थस्य = अर्थ की, इव = तरह, तत् = पदार्थ, उन्मुखतया = जानने के अभिमुख। सूत्रार्थ : जिस प्रकार अर्थ के उन्मुख होकर उसे जानना अर्थव्यवसाय है। संस्कृतार्थ : यथा यदा घटपटादि शब्दानां प्रतीतिः जायते तदा 26