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________________ अनेकान्त कथन करने वाले और अपने को आप्त समझने के अभिमान से दग्ध हुए एकान्तवादियों का इष्ट (अभिमत तत्त्व) प्रत्यक्ष से बाधित है। इसलिए अरिहन्त ही सर्वज्ञ हैं। 6. आगम प्रमाण का लक्षण आप्त के वचनों से होने वाले अर्थज्ञान को आगम कहते हैं। यहाँ 'आगम' यह लक्ष्य है और शेष उसका लक्षण है। अर्थज्ञान को आगम कहते हैं इतना ही यदि आगम का लक्षण कहा जाए तो प्रत्यक्षादिक में अतिव्याप्ति है, क्योंकि प्रत्यक्षादिक भी अर्थज्ञान हैं। इसलिए वचनों से होने वाले अर्थज्ञान को आगम का लक्षण कहने में भी स्वेच्छापूर्वक (जिस किसी के) कहे हुए भ्रमजनक वचनों से होने वाले अथवा सोये हुए पुरुष के और पागल आदि के वाक्यों से होने वाले नदी के किनारे फल हैं इत्यादि ज्ञानों में अतिव्याप्ति है, इसलिए आप्त यह विशेषण दिया है। आप्त के वचनों से होने वाले ज्ञान को आगम का लक्षण कहने में भी आप्त के वचनों को सुनकर जो श्रावण प्रत्यक्ष होता है, उसमें लक्षण अतिव्याप्ति है, अतः अर्थ यह पद दिया है। अर्थपद तात्पर्य में रूढ़ है। अर्थात् प्रयोजनार्थक है, क्योंकि “अर्थ ही, तात्पर्य ही वचनों में है'। ऐसा आचार्य वचन है। मतलब यह है कि यहाँ पद का अर्थ तात्पर्य विवक्षित है, क्योंकि वचनों में तात्पर्य ही होता है। इस प्रकार आप्त के वचनों से होने वाले अर्थ (तात्पर्य) ज्ञान को जो आगम का लक्षण कहा गया है वह पूर्ण निर्दोष है। जैसे - ‘सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः'(त. सूत्र 1-1)! सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र इन तीनों की एकता (सहभाव) मोक्ष का मार्ग है। इत्यादि वाक्यार्थज्ञान / सम्यग्दर्शनादिक सम्पूर्ण कर्मों के क्षय रूप मोक्ष का मार्ग अर्थात् उपाय है न कि मार्ग है। अतएव भिन्न-भिन्न लक्षण वाले सम्यग्दर्शनादि तीनों मिलकर ही मोक्ष का मार्ग हैं, एक एक नहीं, ऐसा अर्थ ‘मार्गः' इस एकवचन के प्रयोग के तात्पर्य से सिद्ध होता है। यही उक्त वाक्य का अर्थ है और इसी अर्थ में प्रमाण से संशयादिक की निवृत्तिरूप प्रमिति होती है। 202
SR No.007147
Book TitleParikshamukham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandi Aacharya, Vivekanandsagar, Sandip
PublisherAnekant Gyanmandir Shodh Samsthan
Publication Year2011
Total Pages22
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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