________________ सामान्यतया सिद्ध हो परन्तु वह अरिहन्त के है यह कैसे? क्योंकि किसी के' यह सर्वनाम शब्द है और सर्वनाम शब्द सामान्य का ज्ञापक होता है? समाधान - सत्य है। इस अनुमान से सामान्य सर्वज्ञ की सिद्धि है। 'अरिहन्त सर्वज्ञ हैं' यह हम अन्य अनुमान से सिद्ध करते हैं / वह अनुमान इस प्रकार है। अरिहन्त सर्वज्ञ होने के योग्य हैं, क्योंकि वे निर्दोष हैं, जो सर्वज्ञ नहीं हैं वह निर्दोष नहीं है, जैसे रथ्यापुरुष (पागल)। यह केवल-व्यतिरेकीहेतुजन्य अनुमान है। __ आवरण और रागादि ये दोष हैं और इनसे रहितता का नाम निर्दोषता है। वह निर्दोषता सर्वज्ञता के बिना नहीं हो सकती है, क्योंकि जो किञ्चित् है, अल्पज्ञानी है उसके आवरणादि दोषों का अभाव नहीं है। अतः अरिहन्त में रहने वाली यह निर्दोषता उनमें सर्वज्ञता को अवश्य सिद्ध करती है और यह निर्दोषता अरिहन्त परमेष्ठी में उनके युक्ति और शास्त्र से अविरोधी वचन भी उनके द्वारा माने गये मुक्ति, संसार और मुक्ति तथा संसार के कारण तत्त्व और अनेक धर्म युक्त चेतन तथा अचेतन तत्त्व प्रत्यक्षादि प्रमाण से बाधित न होने से अच्छी तरह सिद्ध होते हैं। तात्पर्य यह है कि अरिहन्त के द्वारा उपदिष्ट तत्त्वों में प्रत्यक्षादि प्रमाणों से कोई बाधा नहीं आती है। अतः वे यथार्थ वक्ता हैं और यथार्थ वक्ता होने से निर्दोष हैं तथा निर्दोष होने से सर्वज्ञ हैं। शंका - इस प्रकार अरिहन्त के सर्वज्ञता सिद्ध हो जाने पर भी वह अरिहन्त के ही है, यह कैसे? क्योंकि कपिल आदि के भी वह सम्भव है। समाधान - कपिल आदि सर्वज्ञ नहीं हैं, क्योंकि वे सदोष हैं और सदोष इसलिए हैं कि वे युक्ति और शास्त्र से विरोधी कथन करने वाले हैं। युक्ति और शास्त्र से विरोधी कथन करने वाले भी इस कारण से है कि उनके द्वारा माने गये मुक्ति आदिक तत्त्व और सर्वथा एकान्त तत्त्व प्रमाण से बाधित हैं / अतः वे सर्वज्ञ नहीं हैं। अरिहन्त ही सर्वज्ञ हैं। स्वामी समन्तभद्र ने भी कहा है - हे अर्हन् वह सर्वज्ञ आप ही हैं, क्योंकि आप अविरुद्ध हैं - युक्ति और आगम से उनमें कोई विरोध नहीं आता और वचनों में विरोध इस कारण नहीं है कि आपका इष्ट (मुक्ति आदि तत्त्व) प्रमाण से बाधित नहीं है, किन्तु तुम्हारे 201