________________ ये स्वभाव, काल और देश से विप्रकृष्ट पदार्थ यहाँ धर्मी (पक्ष) है। किसी के प्रत्यक्ष हैं, यह साध्य है। यहाँ प्रत्यक्ष शब्द का अर्थ प्रत्यक्षज्ञान के विषय यह विवक्षित है, क्योंकि विषयी (ज्ञान) के धर्म (जानना) का विषय में भी उपचार होता है। अनुमान से जाने जाते है, यह हेतु है। अग्नि आदि दृष्टान्त हैं। अग्नि आदि दृष्टान्त में अनुमान से जाने जाते हैं / यह हेतु किसी के प्रत्यक्ष है, इस साध्य के साथ पाया जाता है। अतः वह परमाणु वगैरह सूक्ष्मादि पदार्थों में भी किसी की प्रत्यक्षता को अवश्य सिद्ध करता है। तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार अग्नि आदि अनुमान से जाने जाते हैं। अतएव वे किसी के प्रत्यक्ष भी होते हैं। उसी प्रकार सूक्ष्मादि अतीन्द्रिय पदार्थ चूँकि हम लोगों के द्वारा अनुमान से जाने जाते हैं / अतएव वे किसी के प्रत्यक्ष भी हैं और जिसके प्रत्यक्ष हैं, वही सर्वज्ञ है। परमाणु आदि में अनुमान से जाने जाते हैं / यह हेतु असिद्ध भी नहीं है, क्योंकि उनको अनुमान से जानने में किसी को विवाद नहीं है। अर्थात् सभी मत वाले इन पदार्थों को अनुमेय मानते हैं। __ शंका - सूक्ष्मादि पदार्थों को प्रत्यक्ष सिद्ध करने के द्वारा किसी के सम्पूर्ण पदार्थों का प्रत्यक्ष ज्ञान हो, यह हम मान सकते हैं। परन्तु वह अतीन्द्रिय है। इन्द्रियों की अपेक्षा नहीं रखता है, यह कैसे? समाधान - इस प्रकार यदि ज्ञान इन्द्रियजन्य हो तो सम्पूर्ण पदार्थों को जानने वाला नहीं हो सकता है, क्योंकि इन्द्रियाँ अपने योग्य विषय (सन्निहित और वर्तमान अर्थ) में ही ज्ञान को उत्पन्न कर सकती हैं और सूक्ष्मादि पदार्थ इन्द्रियों के योग्य विषय नहीं हैं / अतः वह सम्पूर्ण पदार्थ विषयक ज्ञान अतीन्द्रिय ही है। इन्द्रियों की अपेक्षा से रहित अतीन्द्रिय है, यह बात सिद्ध हो जाती है। इस प्रकार से सर्वज्ञ को मानने में किसी भी सर्वज्ञवादी को विवाद नहीं है। जैसा कि दूसरे भी कहते हैं - पुण्य-पापादिक किसी के प्रत्यक्ष हैं क्योंकि वे प्रमेय हैं। 5. सामान्य से सर्वज्ञ को सिद्ध करके अरिहन्त के सर्वज्ञता की सिद्धि शंका - सम्पूर्ण पदार्थ को साक्षात् करने वाला अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष ज्ञान 200