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________________ हैं। अविनाभाव का ही दूसरा नाम व्याप्ति है। 54. सहभावनियम - सहचारी और व्याप्य-व्यापक पदार्थों में सहभावनियम होता है। जैसे रूप और रस में तथा शिंशपा और वृक्ष में सहभावनियम पाया जाता है। 55. क्रमभावनियम - पूर्वचर और उत्तरचर में तथा कार्य और कारण में क्रमभावनियम होता है। जैसे कृत्तिकोदय और शकटोदय में तथा धूम और अग्नि में क्रमभावनियम है। 56. तिर्यक्सामान्य - सदृश (सामान्य) परिणाम को तिर्यक् सामान्य कहते हैं। जैसे-खण्डी, मुण्डी आदि गौ में रहने वाला गोत्व तिर्यक् सामान्य है। 57. ऊर्ध्वता सामान्य - पूर्व और उत्तर पर्यायों में रहने वाले द्रव्य को ऊर्ध्वता सामान्य कहते हैं। जैसे स्थास, कोश, कुशूल आदि घट की पर्यायों में रहने वाली मिट्टी ऊर्ध्वता सामान्य कहलाती है। 58. पर्यायविशेष - एक द्रव्य में क्रम से होने वाले परिणामों को पर्याय विशेष कहते हैं। जैसे आत्मा में क्रम से होने वाले हर्ष, विषाद आदि परिणाम पर्यायविशेष कहलाते हैं। 59. व्यतिरेकविशेष - एक पदार्थ से विजातीय अन्य पदार्थ में रहने वाले विसदृश परिणाम को व्यतिरेकविशेष कहते हैं। जैसे गाय से भैंस में व्यतिरेकविशेष पाया जाता है। 60. बालप्रयोगाभास - अनुमान के प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, उपनय और निगमन इन पाँच अवयवों का प्रयोग न करके कुछ कम अवयवों का प्रयोग करना बालप्रयोगाभास है, क्योंकि बालकों को समझाने के लिए पाँचों अवयवों का प्रयोग आवश्यक है। 61. करणज्ञान - प्रमिति की उत्पत्ति में जो साधकतम (विशिष्ट) कारण होता है, उसे करण कहते हैं। घटादि की प्रमिति ज्ञान के द्वारा होती है। अतः ज्ञान करण कहलाता है। यह करणज्ञान विशद (प्रत्यक्ष) होता है, किन्तु मीमांसक इसे अविशद मानते हैं। 62. उपलब्धिलक्षणप्राप्त - जिस वस्तु में चक्षु इन्द्रिय के द्वारा उपलब्ध ___ 193
SR No.007147
Book TitleParikshamukham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandi Aacharya, Vivekanandsagar, Sandip
PublisherAnekant Gyanmandir Shodh Samsthan
Publication Year2011
Total Pages22
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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