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________________ अर्थात् साध्य बतलाना पक्षाभास कहलाता है। 45. उदाहरण - जहाँ-जहाँ धूम होता है, वहाँ-वहाँ अग्नि होती है। जैसे महानस। इस प्रकार के कथन को उदाहरण कहते हैं। यहाँ महानस दृष्टान्त है और उसका वचन उदाहरण कहलाता है। 46. उपनय - पक्ष में हेतु के उपसंहार करने को उपनय कहते हैं। जैसे यह पर्वत धूमवान् है, ऐसा कहना उपनय कहलाता है। 47. निगमन - प्रतिज्ञा के उपसंहार को निगमन कहते हैं। जैसे धूमवान होने से पर्वत अग्निमान है, ऐसा कहना निगमन कहलाता है। 48. अन्वयदृष्टान्त - जहाँ साध्य के साथ साधन की व्याप्ति बतलायी जाती है, उसे अन्वय दृष्टान्त कहते हैं। जैसे अग्नि के साथ धूम की व्याप्ति बतलाने में महानस अन्वयदृष्टान्त कहलाता है। 49. अन्वयदृष्टान्ताभास - अन्वयदृष्टान्ताभास के तीन भेद हैं- असिद्धसाध्य, असिद्धसाधन और असिद्धोभय। इनको साध्यविकल, साधनविकल, उभयविकल भी कहते हैं। शब्द पौरुषेय है, क्योंकि वह अमूर्त है। जैसे इन्द्रिय सुख, परमाणु और घट। ये दोनों दृष्टान्त क्रमशः साध्यविकल, साधनविकल, उभयविकल अन्वयदृष्टान्ताभास हैं। 50. व्यतिरेक दृष्टान्त - यहाँ साध्य के अभाव में साधन का अभाव बतलाया गया है, उसे व्यतिरेक दृष्टान्त कहते हैं। जैसे जहाँ अग्नि नहीं होती है वहाँ धूम भी नहीं होता है। जैसे - जलाशय। यहाँ जलाशय व्यतिरेक दृष्टान्त है। 51. व्यतिरेकदृष्टान्ताभास - व्यतिरेकदृष्टान्ताभास के भी तीन भेद हैं - असिद्धसाध्यव्यतिरेक, असिद्धसाधनव्यतिरेक और असिद्धोभयव्यतिरेक। शब्द अपौरुषेय है, अमूर्त होने से। जैसे - परमाणु, इन्द्रियसुख और आकाश / ये तीनों दृष्टान्त क्रमशः असिद्धसाध्यव्यतिरेक, असिद्ध-साधन व्यतिरेक और असिद्धोभयव्यतिरेक दृष्टान्ताभास हैं। 52. साध्य - इष्ट, अबाधित और असिद्धपदार्थ को साध्य कहते हैं। 53. अविनाभाव - सहभावनियम और क्रमभावनियम को अविनाभाव कहते 192
SR No.007147
Book TitleParikshamukham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandi Aacharya, Vivekanandsagar, Sandip
PublisherAnekant Gyanmandir Shodh Samsthan
Publication Year2011
Total Pages22
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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