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________________ 34. हेत्वाभास - जो हेतु के लक्षण से रहित है, किन्तु हेतु जैसा मालूम पड़ता है, उसे हेत्वाभास कहते हैं। 35. असिद्धहेत्वाभास - जिस हेतु की सत्ता न हो अथवा जिसका निश्चय न हो, उसे असिद्धहेत्वाभास कहते हैं। 36. विरुद्धहेत्वाभास - जिस हेतु का साध्य के विरुद्ध के साथ अविनाभाव निश्चित होता है, उसे विरुद्धहेत्वाभास कहते हैं। जैसे यह कहना कि . शब्द नित्य है, कृतक होने से / यहाँ कृतकत्व हेतु विरुद्ध हेत्वाभास है। 37. अनैकान्तिकहेत्वाभास - जो हेतु पक्ष, सपक्ष और विपक्ष इन तीनों में रहता है, उसे अनैकान्तिक हेत्वाभास कहते हैं। जैसे यह कहना कि शब्द अनित्य है, प्रमेय होने से। यहाँ प्रमेयत्व हेतु अनैकान्तिक हेत्वाभास है। 38. अकिञ्चित्करहेत्वाभास - साध्य के सिद्ध होने पर और प्रत्यक्षादि प्रमाणों से बाधित होने पर भी उस साध्य की सिद्धि के लिए प्रयुक्त हेतु अकिञ्चित्कर हेत्वाभास कहलाता है। 39. प्रतिज्ञा - किसी वस्तु का अनुमान करते समय पहले प्रतिज्ञा की जाती है। जैसे यह पर्वत अग्निमान है, ऐसा कहना प्रतिज्ञा है। ---- 40. धर्मी - जो किसी प्रमाण से प्रसिद्ध होता है, उसे धर्मी कहते हैं। धर्मी का दूसरा नाम पक्ष भी है। पर्वत में अग्नि को सिद्ध करते समय पर्वत धर्मी होता है। वह साध्यधर्मविशिष्ट होने के कारण धर्मी कहलाता है। 41. पक्ष - जहाँ साध्य की सिद्धि की जाती है, उसे पक्ष कहते हैं / पर्वत में अग्नि को सिद्ध करते समय पक्ष होता है। दूसरों शब्दों में धर्म और धर्मी के समुदाय का नाम पक्ष है। 42. सपक्ष - जो पक्ष के समान होता है अर्थात् जहाँ साध्य (अग्नि) और साधन (धूम) दोनों पाये जाते हैं, उसे सपक्ष कहते हैं। जैसे महानस सपक्ष है। 43. विपक्ष - जहाँ साध्य और साधन दोनों का अभाव पाया जाता है, उसे विपक्ष कहते हैं। जैसे नदी विपक्ष है। 44. पक्षाभास - अनिष्ट, प्रत्यक्षादि प्रमाणों से बाधित और सिद्ध को पक्ष 191
SR No.007147
Book TitleParikshamukham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandi Aacharya, Vivekanandsagar, Sandip
PublisherAnekant Gyanmandir Shodh Samsthan
Publication Year2011
Total Pages22
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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