________________ 23. प्रत्यभिज्ञानाभास - सदृश पदार्थ में वह यह वही है, ऐसा कहना तथा उसी पदार्थ में यह उसके सदृश है ऐसा कहना प्रत्यभिज्ञानाभास है। 24. ऊह - (अन्वय) और अनुपलम्भ (व्यतिरेक) के निमित्त से जो व्याप्ति का ज्ञान होता है, उसे ऊह (तर्क) कहते हैं। जैसे - अग्नि के होने पर धूम होता है और अग्नि के अभाव में धूम नहीं होता है, इस प्रकार के ज्ञान का नाम ऊह है। 25. तर्क - ऊपर नं 24 में ऊह की जो परिभाषा बतलायी गई है, वही तर्क की परिभाषा है। तर्क और ऊह दोनों पर्यायवाची शब्द हैं। धूम और अग्नि में अविनाभाव सम्बन्ध है और तर्क के द्वारा इसी अविनाभाव सम्बन्ध का ज्ञान किया जाता है। 26. तर्काभास - अविनाभाव सम्बन्ध से रहित पदार्थों में अविनाभाव सम्बन्ध का ज्ञान करना तर्काभास है। 27. अनुमान - साधन से होने वाले साध्य के ज्ञान को अनुमान कहते हैं। जैसे धूम से जो अग्नि का ज्ञान होता है, वह अनुमान कहलाता है। 28. स्वार्थानुमान - दूसरे के उपदेश के बिना स्वतः ही साधन से साध्य का जो ज्ञान होता है, उसे स्वार्थानुमान कहते हैं। स्वार्थानुमान अपने लिए होता है। 29. परार्थानुमान - स्वार्थानुमान के विषयभूत अर्थ का परामर्श करने वाले वचनों से जो ज्ञान उत्पन्न होता है, उसे परार्थानुमान कहते हैं / परार्थानुमान पर के लिए होता है। 30. अनुमानाभास - व्याप्ति के ग्रहण, स्मरण आदि के बिना अकस्मात् . धूम के दर्शन से होने वाला अग्नि का ज्ञान अनुमानाभास है। 31. आगम - आप्त के वचनों से होने वाले अर्थ ज्ञान को आगम कहते हैं। 32. आगमाभास - रागद्वेष और मोह से आक्रान्त (परिव्याप्त) पुरुषों के वचनों से होने वाले अर्थ ज्ञान को आगमाभास कहते हैं। 33. हेतु - साध्य के साथ जिसका अविनाभाव निश्चित होता है, उसे हेतु कहते हैं। 190