________________ परिशिष्ट - 2 परीक्षामुख में आगत पारिभाषिक शब्द 1. प्रमाण - अपने और अपूर्व अर्थ के निश्चय करने वाले ज्ञान को प्रमाण कहते हैं। प्रमाणाभास - जो ज्ञान प्रमाण के लक्षण से रहित है वह प्रमाणाभास कहलाता है। जैसे अस्वसंवेदी, गृहीतग्राही, अनिश्चयात्मक, संशय, विपर्यय और अनध्यवसाय ये सब ज्ञान प्रमाणाभास हैं। 3. प्रमाणसंख्या - प्रत्यक्ष और परोक्ष के भेद से प्रमाण की संख्या दो है। 4. संख्याभास - प्रत्यक्ष ही एक प्रमाण है। अथवा प्रत्यक्ष और अनुमान - ये दो प्रमाण हैं, इत्यादि प्रकार से कथन करना संख्याभास है। 5. प्रमाणविषय - सामान्यविशेषात्मक अर्थ प्रमाण का विषय होता है। 6. विषयाभास - केवल सामान्य को या केवल विशेष को अथवा स्वतन्त्र रूप से दोंनो को प्रमाण का विषय मानना विषयाभास है। 7. प्रमाणफल - अज्ञाननिवृत्ति, हान, उपादान और उपेक्षा ये प्रमाण के फल हैं। 8. फलाभास - प्रमाण के फल को प्रमाण से सर्वथा भिन्न मानना फलाभास है, क्योंकि प्रमाण का फल प्रमाण से कथंचित् अभिन्न और कथंचित् भिन्न होता है। 1. समारोप - संशय, विपर्यय और अनध्यवसाय को समारोप कहते हैं। 10. अपूर्वार्थ - जिस पदार्थ का पहले किसी ज्ञान से निश्चय नहीं हुआ है उसे अपूर्वार्थ कहते हैं। किसी ज्ञान से ज्ञात पदार्थ भी उसमें समारोप हो जाने के कारण अपूर्वार्थ हो जाता है। 11. प्रत्यक्ष - विशद अर्थात् निर्मल और स्पष्ट ज्ञान को प्रत्यक्ष कहते हैं। 12. सांव्यवहारिकप्रत्यक्ष - इन्द्रिय और मन के निमित्त से होने वाले एकदेश विशद ज्ञान को सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष कहते हैं। 13. मुख्यप्रत्यक्ष - सम्यग्दर्शनादि अन्तरङ्ग और देशकालिक बहिरङ्ग सामग्री 188