________________ बुद्धि आदिक की सिद्धि नहीं कर सकता। इसलिए चार्वाक के द्वारा स्वीकृत प्रत्यक्ष ही एक प्रमाण है - ऐसा मानना संख्याभास है। . विशेषार्थ : . मत प्रमाण संख्या 1. चार्वाक / प्रत्यक्ष (एक) : 2. सौगत प्रत्यक्ष, अनुमान (दो) 3. सांख्य प्रत्यक्ष, अनुमान, आगेम, (तीन) 4. यौग प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम, उपमान (चार) 5. प्रभाकर प्रत्यक्ष, अनुमान आगम, उपमान, अर्थापत्ति (पाँच) 6. जैमिनीय प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम, उपमान, अर्थापत्ति, अभाव (छ:) इन सबके द्वारा माने गए प्रमाणों से व्याप्ति अर्थात् अविनाभाव का ग्रहण नहीं होता है। अब यहाँ पर चार्वाक का कहना है कि पराई बुद्धि आदिक का ज्ञान यदि प्रत्यक्ष से नहीं होता न होवे, अन्य अनुमानादिक से हो जायेगा, ऐसी शंका का समाधान देते हैं - अनुमानादेरतद्विषयत्वे प्रमाणान्तरत्वम्॥ 58 // सूत्रान्वय : अनुमानादेः = अनुमान आदि के, अतत् = उस परबुद्धि का, विषयत्वेः =विषयपना, प्रमाणान्तरत्वम्= प्रमाणन्तरपना। सूत्रार्थ : अनुमानादि के परबुद्धि आदिक का विषयपना मानने पर अन्य प्रमाणों के मानने का प्रसंग आता है। संस्कृतार्थ : अनुमानेन परलोकादिनिषेधस्य परबुद्धयादिसिद्धेर्वा स्वीकारेऽनुमानं द्वितीय प्रमाणं माननीयं भवेत् / तदा प्रत्यक्षमात्रस्य प्रमाणस्याङ्गीकरणं संख्याभासः सुस्पष्टो भवेत्। टीकार्थ : अनुमान के द्वारा परलोकादि का निषेध और परबुद्धि आदि के सिद्ध होने पर आपके द्वारा स्वीकार करने पर अनुमान को द्वितीय प्रमाण मानना होगा। तब तो प्रत्यक्ष ही एक प्रमाण मानना संख्याभास बिल्कुल स्पष्ट 167