SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 165
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ टीकार्थ : अनुमान अवयवों का क्रमहीन प्रयोग करने पर प्रकृत अर्थ का स्पष्ट से ठीक-ठीक ज्ञान नहीं होता। इसलिए वह बाल प्रयोगाभास है। विशेषार्थ : पाँच अवयवों में से हीन प्रयोग या विपरीत प्रयोग करने पर शिष्यादिक को प्रकृत वस्तु का यथार्थ बोध नहीं हो पाता, इसलिए उन्हें . बालप्रयोगाभास कहते हैं। अब आचार्य भगवन् आगमाभास का स्वरूप कहते हैं - रागद्वेषमोहाक्रान्तपुरुषवचनाज्जातमागमाभासम् // 51 // सूत्रान्वय : रागद्वेषमोहाक्रान्त = रागद्वेष मोह से आक्रान्त, पुरुषवचनात् = पुरुष के वचन से, जातम् = उत्पन्न हुआ, आगमाभासम् = आगमाभास है। सूत्रार्थ : रागद्वेषमोह से आक्रान्त (व्याप्त) पुरुष के वचनों से उत्पन्न हुए पदार्थ के ज्ञान को आगमाभास कहते हैं। संस्कृतार्थ : रागिणो, द्वेषिणोऽज्ञानिनो वा मानवस्य वचनेभ्यः समुत्पन्नः आगमः आगमाभासो विज्ञेयः। टीकार्थ : रागियों के, द्वेषियों के और अज्ञानियों के वचनों के द्वारा . उत्पन्न आगम को आगमाभास जानना चाहिए। अब आगमाभास का उदाहरण कहते हैं - यथा नद्यास्तीरे मोदकराशयः सन्ति, धावध्वं माणवकाः॥ 52 // सूत्रान्वय : यथा = जैसे, नद्याः = नदी के, तीरे = किनारे पर, मोदकराशयः-लड्डुओं के ढेर, सन्ति = हैं, धावध्वं = दौड़ो, माणवक: बालको। सूत्रार्थ : जैसे कि - हे बालको दौड़ो, नदी के किनारे लड्डुओं के ढेर लगे हैं। संस्कृतार्थ : नद्यास्तीरे मोदकराशयः सन्ति, धावध्वं माणवकाः इति वचनमागमाभासो विद्यते रागेणोक्तत्वात् / टीकार्थ : नदी के किनारे लड्डुओं के ढेर लगे हैं, बालको दौड़ो। इस प्रकार का वचन आगमाभास है, क्योंकि यह वचन रागोक्त है। (राग से कहा गया है) 163
SR No.007147
Book TitleParikshamukham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandi Aacharya, Vivekanandsagar, Sandip
PublisherAnekant Gyanmandir Shodh Samsthan
Publication Year2011
Total Pages22
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy