________________ टीकार्थ : घर, यह यह प्रदेश अग्नि वाला है, धूम वाला होने से, जो धूम वाला होता है, वह अग्नि वाला होता है, जैसे-रसोई धूम वाला है। इस अनुमान प्रयोग में प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, उपनय, इन चार अवयवों का ही प्रयोग किया गया है। निगमन को छोड़ दिया गया है। इसलिए यह प्रयोग बालप्रयोगाभास जानना चाहिए। अब अवयवों के विपरीत प्रयोग करने पर भी प्रयोगाभास है, यह कहते हैं - तस्मादग्निमान् धूमवान् चायम्॥49॥ सूत्रान्वय : तस्मात् = इसलिए, अग्निमान् = अग्नि वाला, धूमवान् = धूमवाला, च = और, अयम् = यह। सूत्रार्थ : इसलिए यह अग्नि वाला है और यह भी धूम वाला है। संस्कृतार्थ : दृष्टान्तानन्तरम् उपनय, प्रयोक्तव्यः,यत्तथा चायं धूमवान् / ततश्च निगमनं प्रयोक्तव्यम्, यत्तस्मादग्निमान्। किन्त्वत्र सूत्रे उपनयनिगमने वैपरीत्येन प्रयुक्ते, अतोऽयम्प्रयोगो बाल प्रयोगाभासो विज्ञेयः। टीकार्थ : दृष्टान्त के बाद उपनय का प्रयोग करना चाहिए कि उसी तरह यह धूम वाला है और फिर निगमन को बोलना चाहिए, इसी से अग्नि वाला है परन्तु इस सूत्र में उपनय और निगमन विपरीतता से कहे गए हैं। इसलिए यह प्रयोग बालप्रयोगाभास जानना चाहिए। अब अवयवों के विपरीत प्रयोग करने पर प्रयोगाभास कैसे कहा ? ऐसी शंका होने पर समाधान देते हैं - स्पष्टतया प्रकृतप्रतिपत्तेरयोगात्॥ 50 // सूत्रान्वय : स्पष्टतया = स्पष्ट रूप से, प्रकृतप्रतिपत्ते = प्रकृत ज्ञान के, अयोगात् = योग्य नहीं होने से। सूत्रार्थ : कम अवयव प्रयोग करने पर पदार्थ का स्पष्टता से ठीकठीक ज्ञान नहीं होता। संस्कृतार्थ : अनुमानावयवानां क्रमहीन प्रयोगे प्रकृतार्थस्य स्पष्टतया ज्ञानं नो जायते / अतः सः बालप्रयोगाभासः प्रोच्यते। 162