________________ प्रयोगाभास है। (प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, उपनय, निगमन) संस्कृतार्थ : पञ्चभ्यो हीनैरनुमानावयवैः बालकानां यथार्थज्ञानं नो जायते, अतएव तान्प्रति पञ्चैवावयवाः प्रयोक्तव्या भवेयुः। अतो हीनावयवप्रयोगो बालप्रयोगाभासो भवेत्। ___टीकार्थ : पंच अनुमान अंगों में से कितने ही कम अवयवों के द्वारा बालकों को वास्तविक ज्ञान नहीं हो सकता। इसलिए ही उनके प्रति पाँच ही अवयव कहना चाहिए। इसलिए कम अवयव प्रयोग बालप्रयोगाभास है। विशेषार्थ : अल्पज्ञानी पुरुषों को उक्त पाँचों अवयवों में से तीन या चार अवयवों के प्रयोग करने पर प्रकृत वस्तु का यथार्थ ज्ञान नहीं हो सकता। अतः बालप्रयोगाभास है। अब आचार्य बालप्रयोगाभास का उदाहरण कहते हैं - अग्निमानयं प्रदेशो धूमवत्वाद्यदिथं तदित्थं यथा महानसः॥47॥ सूत्रान्वय : अग्निमान् = अग्निवाला, अयं = यह, प्रदेशः = प्रदेश, धूमवत्वात् = धूम वाला होने से, यत् = जो, इत्थं = इस प्रकार, तत्= वह, यथा = जैसे, महानसः = रसोई घर। सूत्रार्थ : यह प्रदेश अग्नि वाला है, धूम वाला होने से। जो धूम वाला होता है, वह अग्नि वाला होता है, जैसे रसोईघर। विशेषार्थ : यहाँ पर अनुमान के प्रतिज्ञा, हेतु और उदाहरण इन तीन ही अवयवों का प्रयोग किया गया है, अतः इससे यह बालप्रयोगाभास है। अब चार अवयवों के प्रयोग करने पर तदाभासता कहते हैं - धूमवाँश्चायम्॥ 48 // सूत्रान्वय : धूमवान् = धूम वाला, च = और, अयम् = यह। सूत्रार्थ : और यह भी धूम वाला है। (उपनय) संस्कृतार्थ : अग्निमानयं प्रदेशो, धूमवत्वात्, यदित्थं यथा महानसः धूमवाँश्चायम् / अत्रानुमानप्रयोगे प्रतिज्ञाहेतूदाहरणोपनायानां चतुर्णामवयवानामेव प्रयोगो विहितो, निगमनं तु परित्यक्तम्।अतोऽयम्प्रयोगो बालप्रयोगाभासो विज्ञेयः। 161