________________ आकाश के पौरुषेयपने का अभाव है और मूर्तपने का भी अभाव है। अब व्यतिरेक दृष्टान्ताभास का उदाहरणान्तर कहते हैं - विपरीतव्यतिरेकश्च यन्नामूर्तं तन्नापौरुषेयम्॥ 45 // सूत्रान्वय : विपरीतव्यतिरेकः = विपरीत व्यतिरेक, च = और, यत् = जो, अमूर्तं = अमूर्त, न = नहीं, तत् = वह, अपौरुषेयम् =अपौरुषेय। सूत्रार्थ : जो अमूर्त नहीं है, वह अपौरुषेय नहीं है, यह विपरीत व्यतिरेक दृष्टान्ताभास का उदाहरण है। संस्कृतार्थ : यत्र साधनाभावमुखेन साध्याभावः प्रदर्शते सोऽपि व्यतिरेकदृष्टान्ताभासो भवति। तद्यथा यन्नामूर्तं तन्नापौरुषेयं तथा घटः, इत्यत्र घटः व्यतिरेकदृष्टान्ताभासः विद्युदादेः मूर्तत्वेऽपि पौरुषेयत्वाभावात् / टीकार्थ : जहाँ पर साधन के अभाव मुख से, साध्य का अभाव दिखाया जाता है, वह व्यतिरेकदृष्टान्ताभास होता है। जैसे - जो अमूर्त है, वह पौरुषेय नहीं है। जैसे-घट, इस प्रकार इसमें घट व्यतिरेक दृष्टान्ताभास है क्योंकि विद्युतादि के मूर्तपना होने पर भी पौरुषेयपने का अभाव होने से। विशेष : व्यतिरेक व्याप्ति में सर्वत्र साध्य के अभाव में साधन का अभाव दिखाया जाता है, यहाँ पर वह विपरीत दिखायी गयी है अर्थात् साधन के अभाव में साध्य का अभाव बतलाया गया है, अतः इसे व्यतिरेक-दृष्टान्ताभास कहा गया है, क्योंकि इस प्रकार की व्याप्ति में भी विद्युत आदि से अतिप्रसंगदोष आता है। अब बाल व्युत्पत्ति के लिए उदाहरण, उपनय, निगमन पहले स्वीकार किए गए हैं, यह बात पहले ही कही जा चुकी है। अब बालजनों के प्रति कुछ अवयवों के कम प्रयोग करने पर वे प्रयोगाभास हैं, यह कहते हैं - ___ बालप्रयोगाभासः पञ्चावयवेषु कियद्धीनता॥ 46 // ___ सूत्रान्वय : बालप्रयोगाभासः = बाल प्रयोगाभास, पञ्च = पाँच, अवयवेषु = अवयवों में, कियद्धीनता = कितने ही कम। सूत्रार्थ : पाँच अवयवों में से कितने ही कम अवयवों का प्रयोग बाल 160