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________________ संस्कृतार्थ : विपरीतान्वयव्याप्तिप्रदर्शनेन विद्युदादिनातिप्रसङ्गेभवेत् / अर्थात् विद्युत् अपौरुषेया विद्यतेऽतोऽमूर्ता भवियव्या। परन्तु सा आपौरुषेया सत्यपि मूर्तिका वर्तते, अतोऽत्र विपरीतान्वय व्याप्ति प्रदर्शनम् अन्वयदृष्टान्ताभासो विज्ञेयः। टीकार्थ : उल्टी अन्वय व्याप्ति दिखलाने से बिजली आदि के अतिप्रसङ्ग होता है, अर्थात् बिजली आदि अपौरुषेय है, इसलिए अमूर्त होना चाहिए। परन्तु वह अपौरुषेय होती हुई मूर्तिक है, इसलिए यहाँ पर विपरीत अन्वयव्याप्ति दिखलाने से अन्वयदृष्टान्ताभास जानना चाहिए। अब व्यतिरेक उदाहरणाभास को कहते हैं - व्यतिरेकेऽसिद्धतद्व्यतिरेका, परमाण्विन्द्रिय सुखाकाशवत्॥44॥ सूत्रान्वय : व्यतिरेके = व्यतिरेक में, असिद्धव्यतिरेक = असिद्धसाध्य, असिद्धसाधन,असिद्धोभय, परमाणु परमाणु, इन्द्रियसुख = इन्द्रिय सुख, आकाशवत् = आकाश के समान। सूत्रार्थ : व्यतिरेकदृष्टान्ताभास साध्यविकल, साधनविकल, उभय विकल इनके उदाहरण परमाणु इन्द्रियसुख और आकाश हैं। .... संस्कृतार्थ : व्यतिरेकदृष्टान्ताभासोऽपि त्रिविधः / असिद्धसाध्याभावः, असिद्धसाधनाभावः, असिद्धोभयाभावश्चेति। तद्यथा - शब्द: अपौरुषेयः, अमूर्तत्वात् अत्र अनुमाने परमाणुः साध्याभावविकलदृष्टान्ताभासः तस्यामूर्तत्वेऽपि पौरुषेयत्वाभावात्। अथ चात्रैवानुमाने इन्द्रियसुख साधनाभावविकलदृष्टान्तः तस्य पौरुषेयत्वेऽपि मूर्तत्वाभावात् / किञ्चिात्रैवानुमाने आकाशम् उभयाभाव विकलद्रष्टान्तः आकाशस्य पौरुषेयत्वाभावान्मूर्तत्वाभावाच्च / ___टीकार्थ : व्यतिरेकदृष्टान्ताभास के तीन भेद हैं - असिद्धसाध्य, असिद्धसाधन, असिद्धउभय। जैसे - शब्द अपौरुषेय है, अमूर्त होने से। इस अनुमान में परमाणु साध्य विकल दृष्टान्त है। उसके अमूर्त होने पर भी पौरुषेयपने का अभाव होने से और इस अनुमान में ही इन्द्रिय सुख साधनाभाव विकल दृष्टान्त है, क्योंकि उसके पौरुषेयपना होने पर भी मूर्त का अभाव होने से और क्या इस ही अनुमान में आकाश उभयाभाव विकल दृष्टान्ताभास है, क्योंकि 159
SR No.007147
Book TitleParikshamukham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandi Aacharya, Vivekanandsagar, Sandip
PublisherAnekant Gyanmandir Shodh Samsthan
Publication Year2011
Total Pages22
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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