________________ साध्य-साधन) अन्वय दृष्टान्ताभास है। इन्द्रियसुख में साधनत्व है, साध्यत्व नहीं। यह साध्यविकल दृष्टान्त है। परमाणु में साध्यत्व है, साधनत्व नहीं है, अतः यह दृष्टान्त साधन विकल है। घड़े में अपौरुषेय रूप साध्य और अमूर्तरूप साधन ये दोनों ही नहीं है। अतः यह दृष्टान्त उभय विकल है। अब अन्वय दृष्टान्ताभास का उदाहरणान्तर कहते हैं - विपरीतान्वयश्च यदपौरुषेयं तदमूर्तम्॥ 42 // सूत्रान्वय : विपरीतान्वयः = विपरीत अन्वय, च = और, यत् = जो, अपौरुषेयं = अपौरुषेय, तत् = वह, अमूर्तम् = अमूर्त / सूत्रार्थ : जो अपौरुषेय होता है, वह अमूर्त होता है, वह विपरीतान्वय नाम का दृष्टान्ताभास है। संस्कृतार्थ : यत्र साध्यसाधनयोः वैपरीत्येन अन्वयव्याप्तिः प्रदर्शते सोऽन्वयदृष्टान्ताभासो निगद्यते / तद्यथा यदपौरुषेयं तदमूर्तम् यथा गगनम्। अत्र गगनस्यान्वयदृष्टान्ताभासत्वम् विद्युदादेः अपौरुषेयत्वेऽपि अमूर्तत्वाभावात्। टीकार्थ : जहाँ साध्य और साधन में विपरीतता के साथ अन्वय व्याप्ति दिखलाई जाती है, वह अन्वयदृष्टान्ताभास कहलाता है। जैसे-जो अपौरुषेय होता है, वह अमूर्त होता है। जैसे-आकाश। इसमें आकाश के अन्वयदृष्टान्ताभासपना है, विद्युत आदि के अपौरुषेयपना होने पर भी अमूर्तपने का अभाव होने से। विशेष : साधन के सद्भाव में अन्वय व्याप्ति है, किन्तु यहाँ पर अपौरुषेयरूप साध्य के सद्भाव में अमूर्तरूप हेतु का सद्भाव बतलाया गया है। अतः इसे विपरीतान्वय नाम का दृष्टान्ताभास कहा गया है। अब अन्वय दृष्टान्ताभास की पुष्टि करते हैं - विद्युदादिनाऽति प्रसङ्गेत्॥ 43 // सूत्रान्वय : विद्युदादीना = बिजली आदि से, अतिप्रसङ्गेत् = अति प्रसंग होने से। सूत्रार्थ : क्योंकि इसमें बिजली आदि से अतिप्रसंग दोष आता है। 158