________________ विकल और उभयविकल। संस्कृतार्थ : साध्य विकलः साधनविकलः उभयविकलश्चेति त्रयोऽन्वय दृष्टान्ताभासभेदाः विद्यन्ते। टीकार्थ : साध्यविकल, साधनविकल और उभयविकल इस प्रकार तीन अन्वय दृष्टान्ताभास के भेद हैं। अब अन्वयदृष्टान्ताभास के भेद कहते हैं - अपौरुषेयः शब्दोऽमूर्तत्वादिन्द्रियसुखपरमाणुघटवत्॥ 41 // ___ सूत्रान्वय : अपौरुषेयः = अपौरुषेय, शब्दः = शब्द, अमूर्तत्वात् = अमूर्त होने से, इन्द्रियसुख = इन्द्रियसुख, परमाणु = परमाणु, घटवत् = घड़े के समान। सूत्रार्थ : शब्द अपौरुषेय है, अमूर्त होने से, इन्द्रिय सुख, परमाणु और घट के समान। संस्कृतार्थ : असिद्धसाध्यस्यान्वयदृष्टान्ताभासस्योदाहरणम् शब्दोऽ पौरुषेयः अमूर्तत्वात इन्द्रियजन्यसुखवत् / अत्रेन्द्रियसुखस्य पौरुषेयत्वाद् असिद्ध साध्यत्वम्। __ अथ च पूर्वोक्तानुमाने परमाणुः असिद्धसाधनान्वयदृष्टान्ताभासो भवति। परमाणोः अमूर्तत्वाभावादसिद्धसाधनत्वम्। किञ्च-पूर्वोक्तानुमाने घटोऽसिद्धोभयान्वयदृष्टान्ताभासो जायते। घटस्य अपौरुषेयत्वाभावात् अमूर्तिकत्वाभावाच्चासिद्धोभयत्वम्। टीकार्थ : असिद्धसाध्य अन्वयदृष्टान्ताभास का उदाहरण-शब्द अपौरुषेय है, अमूर्त होने से, जैसे-इन्द्रियजन्य सुख के समान / यहाँ पर इन्द्रिय सुख के पौरुषेय होने से असिद्धसाध्यपना है और अब पूर्व में कहे गए अनुमान में परमाणु असिद्धसाधनान्वय दृष्टान्ताभास होता है, क्योंकि परमाणु के अमूर्तपने का अभाव सिद्ध होने से असिद्धसाधनपना है और क्या पूर्व में कहे गए अनुमान में घड़ा असिद्ध उभयान्वय दृष्टान्ताभास होता है, क्योंकि घड़े में अपौरुषेयपने का अभाव होने से और अमूर्तिकपने का अभाव होने से असिद्धोभय है (असिद्ध 157