________________ विशेष : सर्वज्ञता के साथ वक्तापने का अविरोध इसलिए है कि ज्ञान के उत्कर्ष में वचनों का अपकर्ष नहीं देखा जाता है प्रत्युत प्रकर्षता ही देखी जाती है। अब अकिञ्चित्कर हेत्वाभास के स्वरूप को कहते हैं - सिद्धे प्रत्यक्षादिबाधिते च साध्ये हेतुरकिञ्चित्करः // 35 // . सूत्रान्वय : सिद्धे = सिद्ध होने पर, प्रत्यक्षादिबाधिते = प्रत्यक्षादि प्रमाणों से बाधित होने पर, च = और, साध्ये = साध्य में, हेतुः = हेतु, अकिञ्चित्करः = अकिञ्चित्कर। सूत्रार्थ : साध्य के सिद्ध होने पर तथा प्रत्यक्षादि प्रमाणों से बाधित होने पर प्रयुक्त हेतु अकिञ्चित्कर हेत्वाभास कहलाता है। संस्कृतार्थ : साध्ये सिद्धे प्रत्यक्षादिबाधिते वा सति हेतुः किञ्चिदपि कर्तुं नो शक्नुयात् अतएव सोऽकिञ्चित्करः हेत्वाभासः प्रोच्यते। टीकार्थ : साध्य के सिद्ध होने पर तथा प्रत्यक्षादि प्रमाणों से बाधित होने पर हेतु कुछ भी नहीं कर सकता, इसलिए वह अकिञ्चित्कर हेत्वाभास कहा जाता है। विशेष : जब साध्य सिद्ध हो या प्रत्यक्षादि किसी प्रमाण से बाधित हो तब उसकी सिद्धि के लिए जो भी हेतु दिया जाए वह साध्य की कुछ भी सिद्धि नहीं करता है, इसलिए उसे अकिञ्चित्कर कहते हैं। अब सिद्धसाध्य अकिञ्चित्कर हेत्वाभास का उदाहरण देते हैं - सिद्धः श्रावणः शब्दः शब्दत्वात्॥ 36 // सूत्रान्वय : सिद्धः = सिद्ध, श्रावणः = कर्णइन्द्रिय का, शब्दः = शब्द, शब्दत्वात् = शब्द होने से। सूत्रार्थ : शब्द कर्ण इन्द्रिय का विषय होता है, इसलिए सिद्ध है, शब्द होने से। संस्कृतार्थ : श्रावणः शब्दः शब्दत्वात्। अत्रायं हेतुः सिद्धा साध्योऽकिञ्चित्कर हेत्वाभासो विद्यते। 154