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________________ विशेष : प्रमेयत्व हेतु पक्ष शब्द में और सपक्ष घट में रहता हुआ अनित्य के विपक्षी नित्य आकाश में भी रहता है, क्योंकि आकाश भी निश्चत रूप से प्रमाण का विषय है। अब आचार्य शंकित विपक्षवृत्ति अनैकान्तिक हेत्वाभास को कहते हैं - शंकितवृत्तिस्तु नास्ति सर्वज्ञो वक्तृत्वात्॥33॥ सूत्रान्वय : शंकितवृत्तिः = शंकित विपक्षवृत्ति, नास्ति = नहीं है, सर्वज्ञः = सर्वज्ञ, वक्तृत्वात् =वक्ता होने से। सूत्रार्थ : सर्वज्ञ नहीं है, क्योंकि वह वक्ता है अर्थात् बोलने वाला होने से, यह शंकित विपक्षवृत्ति अनैकान्तिक हेत्वाभास का उदाहरण है। ___ संस्कृतार्थ : नास्ति सर्वज्ञो वक्तृत्वात् / सत्यपि वक्तृत्वे सर्वज्ञत्वस्या विरोधः। अर्थादस्य हेतोः विपक्षे वृत्तिः सम्भाव्यते, अत एवायं हेतुः शंकित विपक्षवृत्तिर्विद्यते। टीकार्थ : सर्वज्ञ नहीं है, वक्ता होने से। वक्तापना रहने पर भी सर्वज्ञपने का अविरोधपना है। अर्थात् इस हेतु का विपक्ष में वृत्ति संभव होने से इसलिए यह हेतु शंकितविपक्षवृत्ति है। अब इस वक्तत्व हेतु का भी विपक्ष में रहना कैसे शंकित है, ऐसी आशंका होने पर उत्तर सूत्र कहते हैं - सर्वज्ञत्वेन वक्तृत्वाविरोधात्॥34॥ सूत्रान्वय : सर्वज्ञत्वेन = सर्वज्ञ के साथ, वक्तृत्व = वक्तापने का, अविरोधात् =विरोध नहीं है। सूत्रार्थ : क्योंकि सर्वज्ञपने के साथ वक्तापने का कोई विरोध नहीं है। संस्कृतार्थ : सर्वज्ञत्वेन वक्तृत्वाविरोधादयं हेतुः सर्वज्ञसद्भावरूपे विपक्षेऽपि सम्भवेत् / अत एवायं शंकित विपक्ष वृत्तिसंज्ञा साधिकैव। टीकार्थ : सर्वज्ञपने के साथ वक्तापने का कोई विरोध नहीं है, इसलिए सर्वज्ञ के सद्भाव रूप विपक्ष में भी यह हेतु रह सकता है। इसलिए इसे हेतु की शंकित विपक्ष वृत्ति संज्ञा सार्थक ही है। 153
SR No.007147
Book TitleParikshamukham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandi Aacharya, Vivekanandsagar, Sandip
PublisherAnekant Gyanmandir Shodh Samsthan
Publication Year2011
Total Pages22
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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