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________________ 287. हेतु का गुण व दोष क्या है ? हेतु का पक्ष और सपक्ष में रहना तो गुण है, परन्तु विपक्ष में रहना दोष है। अब आचार्य निश्चित विपक्षवृत्ति का उदाहरण कहते हैं - निश्चितवृत्तिरनित्यः शब्दः प्रमेयत्वात् घटवत्॥31॥ सूत्रान्वय : निश्चितवृत्तिः = निश्चितवृत्ति, अनित्यः = अनित्य, शब्दः = शब्द, प्रमेयत्वात् = प्रमेय होने से, घटवत् = घट के समान। सूत्रार्थ : शब्द अनित्य है, प्रमेय होने से। जैसे-घट। यह निश्चित विपक्षवृत्ति अनैकान्तिक हेत्वाभास का उदाहरण है। . संस्कृतार्थ : अनित्यः शब्दः प्रमेयत्वाद् घटवत्। अयं प्रमेयो हेतुः पक्षे शब्दे सपक्षे घटे वा विद्यमानोऽपि विपक्षे आकाशेऽपि तिष्ठति, अतोऽनैकान्तिक: प्रोच्यते / विपक्षे च तस्य वृत्तिः निश्चित अतो निश्चितविपक्षवृत्तिरुच्यते। टीकार्थ : शब्द अनित्य है, प्रमेय होने से, घट के समान / यह प्रमेय हेतु पक्ष में (शब्द में) सपक्ष में (घट में) अथवा विद्यमान होने पर भी विपक्ष आकाश में भी उसकी वृत्ति निश्चित हुई। इसलिए, निश्चित विपक्षवृत्ति हेतु कहते हैं। अब आचार्य प्रमेयत्व हेतु की भी विपक्ष में वृत्ति कैसे निश्चित है, इसी का उत्तर देते हैं - आकाशे नित्येऽप्यस्य निश्चयात्॥32॥ सूत्रान्वय : आकाशे = आकाश में, नित्ये = नित्य में, अपि = भी, अस्य = इसका, निश्चयात् =निश्चिय होने से। . सूत्रार्थ : क्योंकि नित्य आकाश में भी इस प्रमेयत्व हेतु के रहने का निश्चय है। संस्कृतार्थ : विपक्षे नित्ये आकाशेऽप्यस्य प्रमेयत्व हेतोः निश्चयादयं निश्चितविपक्षवृत्तिरुच्यते। टीकार्थ : नित्य आकाश विपक्ष में भी इस प्रमेयत्व हेतु के रहने का निश्चय है। इसलिए प्रमेयत्व हेतु निश्चित विपक्षवृत्ति है। 152
SR No.007147
Book TitleParikshamukham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandi Aacharya, Vivekanandsagar, Sandip
PublisherAnekant Gyanmandir Shodh Samsthan
Publication Year2011
Total Pages22
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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