________________ निश्चित है वह विरुद्ध हेत्वाभास है - अपरिणामी शब्द है, कृतक होने से / यहाँ पर इस हेतु का अपरिणामी.के विरुद्ध परिणामी के साथ व्याप्ति है। इसलिए यह हेतु विरुद्धहेत्वाभास अच्छी तरह से सिद्ध है। . . विशेष : इस अनुमान में कृतकत्व हेतु अपरिणामी के विरोधी परिणाम के साथ व्याप्त है, इसलिए यह विरुद्धहेत्वाभास है। अब आचार्य अनैकान्तिक हेत्वाभास का स्वरूप कहते हैं - विपक्षेऽप्यविरुद्धवृत्तिरनैकान्तिकः॥30॥ सूत्रान्वय : विपक्षे = विपक्ष में, अपि = भी, अविरुद्धवृत्ति = अविरुद्ध रूप से होना, अनैकान्तिकः = अनैकान्तिक है। सूत्रार्थ : जिसका विपक्ष में भी रहना अविरुद्ध है, अर्थात् जो हेतु पक्ष सम्पदा के समान विपक्ष में भी बिना किसी विरोध के रहता है, उसे अनैकान्तिक हेत्वाभास कहते हैं। . . नोट : सूत्र पठित अपि शब्द से न केवल पक्ष-सपक्ष में रहने वाला हेतु लेना किन्तु विपक्ष में भी रहने वाले हेतु का ग्रहण करना चाहिए। संस्कृतार्थ : पक्षे, सपक्षे वा विद्यमानोऽपि विपक्षवृत्तिः हेतुरनैकान्तिको हेत्वाभासः। ___टीकार्थ : पक्ष में अथवा सपक्ष में विद्यमान होकर भी विपक्षवृत्ति वाला हेतु अनैकान्तिक हेत्वाभास है। विशेष : इस हेतु के दो भेद हैं -1 निश्चितविपक्षवृत्ति, 2 शंकितविपक्ष वृत्ति। 284. पक्ष किसे कहते हैं ? संदिग्ध साध्य वाले धर्मी को पक्ष कहते हैं। 285. सपक्ष किसे कहते हैं ? साध्य के समान धर्मी को सपक्ष कहते हैं। 286. विपक्ष किसे कहते हैं ? साध्य के विरोधी धर्मी को विपक्ष कहते हैं। 151