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________________ अब आचार्य इस हेतु की असिद्धता में कारण बतलाते हैं - तेनाज्ञातत्वात् // 28 // सूत्रान्वय : तेन = उसने, अज्ञातत्वात् = जाना ही नहीं है। सूत्रार्थ : क्योंकि उसने कृतकपना जाना ही नहीं है। .... संस्कृतार्थ : सांख्यसिद्धान्ते आविर्भावतिरोभावावेव प्रसिद्धौ नोत्पत्ति विनाशौ। अतः शब्दस्य कृतकत्वं तदृष्टौ असिद्धौ हेत्वाभासो जायते। टीकार्थ : सांख्य के सिद्धान्त में अविर्भाव और तिरोभाव ही प्रसिद्ध हैं उत्पत्ति और विनाश नहीं है। इसलिए शब्द का कृतकपना उसकी दृष्टि में असिद्ध हेत्वाभास है। विशेष : सांख्यमत में आविर्भाव (प्रकटपना) और तिरोभाव (अच्छादनपना) ही प्रसिद्ध है, उत्पत्ति आदि प्रसिद्ध नहीं है। किसी पदार्थ के कृतक होने का उसके यहाँ निश्चयन होने से असिद्धपना है। अब आचार्य विरुद्ध हेत्वाभास को कहते हैं - .. विपरीतनिश्चिताविनाभावो विरुद्धोऽपरिणामी शब्दः - कृतकत्वात्। 29 // सूत्रान्वय : विपरीत = उल्टे पदार्थ के साथ, निश्चित= निश्चित, अविनाभावः = अविनाभाव, विरुद्ध = विरुद्ध, अपरिणामी = अपरिणामी, शब्दः = शब्द, कृतकत्वात् = कृतक होने से। .. सूत्रार्थ : साध्य से विपरीत पदार्थ के साथ जिसका अविनाभाव निश्चित हो, उसे विरुद्धहेत्वाभास कहते हैं, जैसे शब्द अपरिणामी है, क्योंकि वह कृतक संस्कृतार्थ : साध्यविरुद्धेन (विपक्षण) सह निश्चिताविनाभावो हेतुः विरुद्धो हेत्वाभासो निरूप्यते। यथा अपरिणामी शब्दः कृतकत्वात्। अत्रास्य हेतोरपरिणामित्वविरुद्धेन परिणामित्वेन सह व्याप्तिः विद्यते, अतोऽयं हेतुः विरुद्धहेत्वाभासः सुसिद्धः। टीकार्थ : साध्य से विपरीत पदार्थ के साथ जिन हेतु का अविनाभाव 150
SR No.007147
Book TitleParikshamukham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandi Aacharya, Vivekanandsagar, Sandip
PublisherAnekant Gyanmandir Shodh Samsthan
Publication Year2011
Total Pages22
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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