________________ शब्दः = शब्द परिणामी है, चाक्षुषत्वात् = चाक्षुष होने से। सूत्रार्थ : शब्द परिणामी है, क्योंकि चाक्षुष है, यह अविद्यमान सत्ता वाले स्वरूपासिद्ध हेत्वाभास का उदाहरण हैं। संस्कृतार्थ : परिणामी शब्दश्चाक्षुषत्वात्। अत्रायं चाक्षुषत्वं हेतुः स्वरूपासिद्धो विद्यते / यतः शब्दो नेत्रानो ज्ञायते, किन्तु कर्णाज्ज्ञायते अतोऽविद्यमानसत्ताकत्वेन स्वरूपासिद्धो जातः। टीकार्थ : शब्द परिणामी है चाक्षुष होने से। इसमें यह चाक्षुषपना हेतु स्वरूप से ही असिद्ध है। क्योंकि शब्द नेत्र से नहीं जाना जाता किन्तु कर्ण से जाना जाता है इसलिए अविद्यमान सत्तावाला होने से स्वरूपासिद्ध है। अब इस हेतु के असिद्धपना कैसा है, इसके विषय में कहते हैं - स्वरूपेणासत्वात्॥ 24 // सूत्रान्वय : स्वरूपेण = स्वरूप से, असत्वात् = असत् होने से। सूत्रार्थ : शब्द का चाक्षुष होना स्वरूप से ही असिद्ध है। संस्कृतार्थ : शब्दः कर्णेन ज्ञायते चक्षुषा नो। अतः शब्दस्य चाक्षुषत्व व्यावर्णनं स्वरूपेणैव नोचितम्। टीकार्थ : शब्द कर्ण इन्द्रिय से जाना जाता है, चक्षु इन्द्रिय से नहीं। इसलिए शब्द के चाक्षुषपने का कथन स्वरूप से ही ठीक नहीं है। अब आचार्य असिद्ध हेत्वाभास के दूसरे भेद को कहते हैं - अविद्यमाननिश्चयो मुग्धबुद्धिं प्रत्यग्निरत्रधूमात्॥25॥ सूत्रान्वय : अविद्यमाननिश्चयः = अविद्यमान निश्चयवाले, मुग्धबुद्धिं प्रति = मुग्ध बुद्धि पुरुष के प्रति, अग्निः = अग्नि, यत्र = यहाँ, धूमात् = धूम होने से। सूत्रार्थ : मुग्ध बुद्धि पुरुष के प्रति कहना यहाँ अग्नि है धूम होने से। यह अविद्यमान निश्चय वाले संदिग्धासिद्ध हेत्वाभास का उदाहरण है। संस्कृतार्थ : मुग्धम्प्रति अग्निरत्र धूमात् इति कथनम्, संदिग्धा सिद्धोहेत्वाभासोः विज्ञेयः। 148