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________________ अब हेत्वाभासों के भेदों को कहते हैं - '. हेत्वाभासा असिद्धविरुद्धानैकान्तिकाकिञ्चित्कराः॥21॥ सूत्रान्वय : हेत्वाभासाः = हेत्वाभास के, असिद्ध विरुद्धानैकान्तिककिञ्चित्कराः = असिद्ध, विरूद्ध, अनैकान्तिक, अकिञ्चित्कर। सूत्रार्थ : असिद्ध, विरुद्ध, अनैकान्तिक और अकिञ्चित्कर ये चार हेत्वाभास के भेद हैं। संस्कृतार्थ : असिद्धः, विरुद्धः, अनैकान्तिकः, अकिञ्चित्करश्चेति चत्वारो हेत्वाभासा विद्यन्ते। टीकार्थ : असिद्ध, विरुद्ध, अनैकान्तिक और अकिञ्चित्कर के भेद से हेत्वाभास चार प्रकार का है। अब क्रमप्राप्त असिद्ध हेत्वाभास का स्वरूप कहते हैं - असत्सत्तानिश्चयोऽसिद्धः॥ 22 // सूत्रान्वय : असत्सत्ता = जिस हेतु की सत्ता का, अभाव हो, अनिश्चयः = निश्चय न हो, असिद्ध = असिद्ध है। सूत्रार्थ : जिस हेतु की सत्ता का अभाव हो अथवा निश्चय न हो उसे असिद्ध हेत्वाभास कहते हैं। संस्कृतार्थ : स्वरूपासिद्धः सन्दिग्धासिद्धश्चेति द्वौ असिद्धहेत्वाभासभेदौ स्तः। तत्राविद्यमानसत्ताको हेतुः स्वरूपासिद्धः अविद्यमाननिश्चयो वा हेतुः सन्दिग्धासिद्धो हेत्वाभासो विज्ञेयः / टीकार्थ : स्वरूपासिद्ध और संदिग्धासिद्ध ये दो भेद असिद्ध हेत्वाभास के हैं। उसमें अविद्यमान सत्ता का (जिस हेतु की सत्ता का अभाव है) उस हेतु को स्वरूपासिद्ध हेत्वाभास कहते हैं और पक्ष में जिस हेतु का निश्चय हो उसे सन्दिग्धासिद्ध हेत्वाभास कहते हैं। अब असिद्ध हेत्वाभास के प्रथमभेद स्वरूपासिद्ध हेत्वाभास को कहते हैं - अविद्यमानसत्ताकः परिणामी शब्दः चाक्षुषत्वात्॥23॥ सूत्रान्वय : अविद्यमानसत्ताः = अविद्यमान सत्ता वाले का, परिणामी 147
SR No.007147
Book TitleParikshamukham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandi Aacharya, Vivekanandsagar, Sandip
PublisherAnekant Gyanmandir Shodh Samsthan
Publication Year2011
Total Pages22
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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