________________ अनुष्णः = उष्ण नहीं है, अग्निः = आग, द्रव्यत्वात् = द्रव्य होने से, जलवत् = पानी के समान। सूत्रार्थ : उनमें से प्रत्यक्षबाधित पक्षाभास का उदाहरण। जैसे - अग्नि उष्णता रहित है, क्योंकि यह द्रव्य है। जैसे-जल। .. संस्कृतार्थ : अनुष्णोऽग्निः द्रव्यत्वात् जलवत्। अत्र अग्निरनुष्णः प्रतीयते / अतोऽयं पक्षः स्पर्शानेन प्रत्यक्षेण बाधितो विद्यते। टीकार्थ : अग्नि ठण्डी होती है, क्योंकि वह द्रव्य है। जैसे - जल। इसमें अग्नि उष्ण नहीं है ऐसा कहना, इसलिए यह पक्ष स्पर्शन प्रत्यक्ष से बाधित है। विशेष : किन्तु स्पर्शन प्रत्यक्ष से अग्नि उष्ण स्पर्श वाली ही अनुभव की जाती है, इसलिए प्रत्यक्षबाधित पक्षाभास का उदाहरण है। अब अनुमानबाधितपक्षाभास का उदाहरण कहते हैं - अपरिणामी शब्दः कृतकत्वात्॥17॥ सूत्रान्वय : अपरिणामी = अपरिणामी, शब्दः = शब्द, कृतकत्वात् = कृतक (किया जाने वाला) होने से। सूत्रार्थ : शब्द अपरिणामी है, कृतक होने से। .. संस्कृतार्थ : अपरिणामी शब्दः कृतकत्वात् / यो यः कृतको विद्यते सः सः अपरिणामी, यथा घटः / अनुमानबाधितपक्षाभासोदाहरणमिदम् / यतोऽत्र पक्षे शब्दः परिणामी, कृतकत्वात्, यो यः कृतकः स सः परिणामी, यथा घट: इत्यनुमानेन बाधा आयाति। टीकार्थ : अपरिणामी शब्द है, किया जाने वाला होने से (जो जो किया जाने वाला है, वह वह अपरिणामी होता है। जैसे - घड़ा। यह अनुमान बाधितपक्षाभास का उदाहरण है। इससे इस पक्ष में शब्द परिणामी है, कृतक होने से, जो जो कृतक होता है, वह वह परिणामी होता है। जैसे-घड़ा। इस प्रकार अनुमान से बाधा आती है। सूत्र में पक्ष (शब्द अपरिणामी) यह पक्ष कृतक इस हेतु से बाधित है 144