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________________ विशेष : मीमांसक लोग नित्य को मानते हैं, अतः उन्हें नित्य इष्ट है परन्तु उसके लिए अनित्य कहना ये अनिष्ट पक्षाभास हो जायेगा। अब सिद्धपक्षाभास के उदाहरण को कहते हैं - सिद्धः श्रावणः शब्दः॥14॥ सूत्रान्वय : सिद्धः = सिद्ध, श्रावणः = सुना जाने वाला, शब्दः = शब्द। सूत्रार्थ : शब्द श्रवणेन्द्रिय का विषय है, यह सिद्धपक्षाभास है। संस्कृतार्थ : शब्दः श्रावणः इति पक्षः सिद्धपक्षाभासो विज्ञेयः / यतः शब्दः श्रुतः अतः श्रावणः सिद्ध एव विद्यते, पुनः पक्षं मत्वा सिद्ध करणं निरर्थकमेव। टीकार्थ : शब्द कर्ण इन्द्रिय का विषय है इस प्रकार सिद्ध पक्षाभास जानना चाहिए। जिससे शब्द सुना जाता है, इसलिए श्रावण सिद्ध है ही। पुनः शब्द को पक्ष मानकर सिद्ध करना निरर्थक है। . . अब बाधितपक्षाभास के भेदों को कहते हैं - .. . .. बाधितः प्रत्यक्षानुमानागमलोकस्ववचनैः॥ 15 // सूत्रान्वय : बाधितः = बाधित के, प्रत्यक्षानुमानागमलोकस्ववचनैः = प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम, लोक, स्ववचनैः = स्ववचनों के द्वारा। सूत्रार्थ : बाधितपक्षाभास प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम, लोक और स्ववचन से बाधित होता है। विशेष : प्रत्यक्षबाधित, अनुमानबाधित, आगमबाधित, लोकबाधित और स्ववचन बाधित ये बाधितपक्षाभास के पाँच भेद हैं। अब प्रत्यक्षबाधित का उदाहरण कहते हैं - तत्र प्रत्यक्षबाधितो यथा, अनुष्णोऽग्नि द्रर्व्यत्वाजलवत्॥16॥ सूत्रान्वय : तत्र = उनमें, प्रत्यक्षबाधितो = प्रत्यक्षबाधित, यथा = जैसे, 143
SR No.007147
Book TitleParikshamukham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandi Aacharya, Vivekanandsagar, Sandip
PublisherAnekant Gyanmandir Shodh Samsthan
Publication Year2011
Total Pages22
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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