________________ संस्कृतार्थ : सदृशे वस्तुनि तदेवेति तथा तस्मिन्नेव वस्तुनि तत् सदृशमिति ज्ञानम् अथवा सादृश्ये एकत्वस्य, एकत्वे वा सादृश्यज्ञानं प्रत्यभिज्ञानाभासं कथ्यते। एवमेव वैलक्षण्यादिष्वपि प्रत्येतव्यम्।। टीकार्थ : सदृश वस्तु में यह वही है तथा उस ही पदार्थ में यह उसके समान है, ऐसा ज्ञान अथवा सदृश्य में एकत्व का और एकत्व में सादृश्य का ज्ञान प्रत्यभिज्ञानाभास कहते हैं, ऐसा ही वैलक्षण्य आदि में जानना है। सूत्र में दो प्रकार के प्रत्यभिज्ञान को बतलाया गया है। 1. एकत्वनिमित्तक, 2. सादृश्य निमित्तिक-एकत्व में सादृश्य का और सादृश्य में एकत्व का ज्ञानाभास प्रत्यभिज्ञानाभास है। अब तर्काभास को कहते हैं - असम्बद्धे तज्ज्ञानं तर्काभासम्॥10॥ सूत्रान्वय : असम्बद्ध = अविनाभाव रहित में, तत् = उस अविनाभाव के, ज्ञानं = ज्ञान को, तर्काभासम् = तर्काभास। सूत्रार्थ : अविनाभाव सम्बन्ध से रहित पदार्थ में अविनाभाव सम्बन्ध का ज्ञान कराना तर्काभास है। ___ संस्कृतार्थ : अविनाभावरहितेऽविनाभावज्ञानं, मिथोव्याप्ति विहीने व्याप्तिज्ञानम् वा तर्काभासो निगद्यते। यथा कस्यचिदेकम्पुत्रं कृष्णमावलोक्य यावन्तोऽस्य पुत्राः सन्ति भविष्यन्ति वा ते सर्वे कृष्णाः सन्ति भविष्यन्ति वेति ज्ञानं तर्काभासः। टीकार्थ : अविनाभाव रहित में अविनाभाव ज्ञान का, अन्वय-व्यतिरेक व्याप्ति से रहित होने पर भी व्याप्ति ज्ञान को तर्काभास कहते हैं / जैसे - किसी के एक पुत्र को काला देखकर इसके जितने पुत्र हैं तथा होवेंगे वे सभी श्याम हैं या होंगे, ऐसी व्याप्ति बनाना तर्काभास है। अब अनुमानाभास का स्वरूप कहते हैं - इदमनुमानाभासम्॥11॥ सूत्रान्वय : इदम् = यह, अनुमानाभासम् = अनुमानाभास है। 141