________________ है। जैसे - मीमांसक के करणज्ञान को परोक्षाभास जानना चाहिए। अतस्मिस्तदिति ज्ञानं स्मरणाभासं, जिनदत्ते स देवदत्तो - यथा॥8॥ ' सूत्रान्वय : अतस्मिन् = पहले अनुभव नहीं किए गए पदार्थ में, तत् = वह, इति = इस प्रकार के, ज्ञानं = ज्ञान को, स्मरणाभासं = स्मरणाभास, जिनदत्ते = जिनदत्त में, सः = वह, देवदत्तः = देवदत्त, यथा = जैसे। सूत्रार्थ : पूर्व में अनुभव नहीं किए गए पदार्थ में वह है अर्थात् वैसी है इस प्रकार का ज्ञान स्मरणाभास है। जैसे - जिनदत्त में वह देवदत्त है। संस्कृतार्थ : अतस्मिन् तदितिज्ञानं स्मरणाभासं। यथा जिनदत्ते स्मृते सः देवदत्तः इति ज्ञानं स्मरणाभासः / टीकार्थ : जिस पदार्थ का कभी धारणारूप अनुभव नहीं हुआ था, उसके अनुभव को स्मरणाभास कहते हैं। जैसे - जिनदत्त का स्मरण करके वह देवदत्त इस प्रकार का ज्ञान स्मरणाभास है। . . . . 283. स्मरणाभास किसे कहते हैं ? जिसं पदार्थ का कभी धारणा रूप अनुभव नहीं हुआ था उसके अनुभव को स्मरणाभास कहते हैं। अब प्रत्यभिज्ञानाभास का स्वरूप कहते हैं - सदृशे तदेवेदं तस्मिन्नेव तेन सदृशम्, यमलकवदित्यादि प्रत्यभिज्ञानाभासम्॥9॥ सूत्रान्वय : सदृशे = सदृश वस्तु में, तत् एवं इदं = यह वही है, तस्मिन् = उसमें, एव = ही, तेन = उसके, सदृशम् = सदृश है, यमलकवत् = युगपत् जन्मे दो बालकों के समान, इत्यादि = इस प्रकार, प्रत्यभिज्ञानाभासं = प्रत्यभिज्ञानाभास। सूत्रार्थ : सदृश पदार्थ में यह वही है, ऐसा कहना उसी पदार्थ में यह उसके सदृश है, ऐसा कहना। जैसे - युगल उत्पन्न हुए मनुष्यों में विपरीत ज्ञान हो जाता है, ऐसा ज्ञान प्रत्यभिज्ञानाभास है। 140