________________ अब क्रम प्राप्त स्वरूपाभास को कहते हैं - अस्वसंविदित-गृहीतार्थदर्शनसंशयादयः प्रमाणाभासाः॥ 2 // सूत्रान्वय : अस्वसंविदित = अस्वसंवेदी, गृहीतार्थ =गृहीत अर्थ, दर्शन = दर्शन, संशयादयः = संशय आदि को, प्रमाणाभासाः = प्रमाणाभास कहते हैं। सूत्रार्थ : अस्वसंविदित, गृहीतार्थ, दर्शन, संशय, विपर्यय और अनध्यवसाय को प्रमाणाभास कहते हैं। ___ संस्कृतार्थ : अस्वसंविदितं, गृहीतार्थ ज्ञानं, दर्शनं, संशयः, विपर्ययः, अनध्यवसायश्चेति सप्तप्रमाणाभासाः प्रोच्यते। ___टीकार्थ : अस्वसंविदित को, गृहीतार्थ ज्ञान को, दर्शन को, संशय को, विपर्यय को और अनध्यवसाय इस प्रकार सात प्रमाणाभास कहे गए हैं। नोट : अस्वसंविदित, गृहीतार्थ, दर्शन और संशय है आदि में जिनके ऐसे संशयादि इन सभी का द्वन्द्व समास करना चाहिए। आदि शब्द से विपर्यय और अनध्यवसाय का भी ग्रहण करना है। 280. अस्वसंविदित ज्ञान किसे कहते हैं ? जो ज्ञान अपने आपके द्वारा अपने स्वरूप को नहीं जानता है, उसे ___ अस्वसंविदित ज्ञान कहते हैं। 281. गृहीतार्थ ज्ञान किसे कहते हैं ? किसी यथार्थ ज्ञान के द्वारा पहले जाने हुए पदार्थ के पुनः जानने वाले ज्ञान को गृहीतार्थ ज्ञान कहते हैं। 282. निर्विकल्प ज्ञान किसे कहते हैं ? यह घट है, यह पट है, इत्यादि विकल्प से रहित निर्विकल्प रूप ज्ञान को दर्शन कहते हैं। (विस्तार - प्रमेयरत्नमाला देखें) अब इन उपर्युक्त अस्वसंविदित ज्ञानादि के प्रमाणाभासता क्यों है, इसका उत्तर देते हुए आचार्य भगवन् कहते हैं - स्वविषयोपदर्शकत्वाभावात्॥3॥ सूत्रान्वय : स्व = अपना, विषयोपदर्शकत्व = विषय के निश्चयपने 136