________________ 271. परम्पराफल किसे कहते हैं ? वस्तु के जानने के पश्चात् परम्परा से प्राप्त होने वाले फल को परम्पराफल . कहते हैं। 272. हान किसे कहते हैं ? जानने के पश्चात् अनिष्ट या अहितकर वस्तु के परित्याग करने को हान कहते हैं। 273. उपादान किसे कहते हैं ? इष्ट या हितकर वस्तु के ग्रहण को उपादान कहते हैं। 274. उपेक्षा किसे कहते हैं ? राग-द्वेष दूर होने के बाद जो उदासीनता रूप भाव है, उसे उपेक्षा कहते यह दोनों ही प्रकार का फल प्रमाण से भिन्न ही है, ऐसा यौग मानते हैं। प्रमाण से फल अभिन्न नहीं है, ऐसा बौद्ध मानते हैं। इन दोनों मतों के निराकरण के साथ अपने मत की व्यवस्था करने के लिए अगला सूत्र कहते हैं - ... प्रमाणादभिन्नं भिन्नं च॥2॥ सूत्रान्वय : प्रमाणात् = प्रमाण से, अभिन्नं = अभिन्न, च =और, भिन्नं = भिन्न। सूत्रार्थ : फल प्रमाण से कथञ्चित् अभिन्न है और कथञ्चित् भिन्न है। संस्कृतार्थ : तत्प्रमाणफलं संज्ञास्वरूपादिभेदापेक्षया कथञ्चित् प्रमाणात् भिन्नं विद्यते / प्रमाणस्यकरणरूपत्वात्, प्रमितेश्च क्रियारूपत्वादिति / कथञ्चिच्चाभिन्न विद्यते। टीकार्थ : वह प्रमाण का फल संज्ञा, स्वरूपादि भेद की अपेक्षा से कथञ्चित् अभिन्न है। अब कथञ्चित् अभेद का समर्थन करने के लिए हेत रूप सूत्र कहते हैं - य: प्रमिमीतेस एव निवृत्ताज्ञानो जहात्यादत्ते उपेक्षतेचेति प्रतीतेः॥3॥ 133