________________ अथ प्रमाण फल निर्णय अथ पञ्चमः परिच्छेदः अब आचार्य भगवन् प्रमाण के फल की विप्रतिपत्ति के निराकरण के लिए उत्तर कहते हैं - अज्ञाननिवृत्तिानोपादानोपेक्षाश्च फलम्॥1॥ सूत्रान्वय : अज्ञाननिवृत्तिः = अज्ञान की निवृत्ति, हान = त्याग, उपादान = ग्रहण, उपेक्षा = उदासीनता, च = और, फलम् = फल। सूत्रार्थ : अज्ञान की निवृत्ति, त्याग, ग्रहण और उदासीनता ये प्रमाण के फल हैं। संस्कृतार्थ : अज्ञानस्य निवृत्तिः अज्ञाननिवृत्तिः। प्रमेयाज्ञान निरास इत्यर्थः / हानं च उपादानं च उपेक्षा चेति हानोपादानोपेक्षाः त्याग ग्रहणानादराः इत्यर्थः। तद्यथा प्रमाणस्य फलं द्विविधं, साक्षात्फलं परम्पराफलं चेति। तत्र साक्षात्फलम् अज्ञाननिवृत्तिः परम्पराफलं च क्वचित्वस्तुत्यागः, क्वचित् वस्तु गृहणं, क्वचित् वस्तु अनादरो वा / त्यागादीनां प्रमेय निश्चयोत्तरकाल भावित्वात्। टीकार्थ : अज्ञान की निवृत्ति अज्ञाननिवृत्ति (षष्ठी तत्पुरुष) प्रमेय सम्बन्धी अज्ञान का निराकरण हेतु यह अर्थ लेना है। हानं च उपादानं च उपेक्षा चेति हानोपादापेक्षाः यहाँ द्वन्द्व समास है। हान का अर्थ त्याग, उपादान का अर्थ ग्रहण, उपेक्षा का अर्थ अनादर है, अतः प्रमाण का फल दो प्रकार है - साक्षात् फल और परम्परा फल, किसी वस्तु का त्याग, किसी वस्तु का ग्रहण और किसी वस्तु का अनादर त्यागादि का प्रमेय के निश्चय करने के उत्तरकाल में होता है। 269. फल कितने प्रकार का होता है ? दो प्रकार का - साक्षात् फल और परम्पराफल। 270. साक्षात् फल किसे कहते हैं ? वस्तु के जानने के साथ ही तत्काल होने वाले फल को साक्षात् फल कहते हैं। 132