________________ 8 अब विशेष के प्रथम भेद को कहते हैं - पर्यायव्यतिरेकभेदात्॥7॥ सूत्रार्थ : पर्याय और व्यतिरेक के भेद से विशेष दो प्रकार का है। संस्कृतार्थ : पर्यायो व्यतिरेकश्चेति द्वौ विशेषस्य भेदौ स्तः। टीकार्थ : पर्याय और व्यतिरेक के भेद से विशेष के दो भेद हैं। पर्याय विशेष का स्वरूप वा उदाहरण कहते हैं - एकस्मिन्द्रव्ये क्रमभाविन: परिणाम: पर्यायाः आत्मनि हर्षविषादादिवत्॥8॥ - सूत्रान्वय : एकस्मिन् द्रव्ये = एक द्रव्य में, क्रम भाविनः = क्रम से होने वाले, परिणामः = परिणाम को, पर्यायाः = पर्याय कहते हैं, आत्मनि =आत्मा में, हर्षविषादादिवत् = हर्ष और विषाद के समान। सूत्रार्थ : एक द्रव्य में क्रम से होने वाले परिणामों को पर्याय कहते हैं, जैसे आत्मा में हर्ष विषाद आदिक। संस्कृतार्थ : एकस्मिन्द्रव्ये क्रमशः समुत्पद्यमानाः भावा पर्यायविशेषाः प्रोच्यन्ते। यथात्मनि हर्ष विषादायो भावाः। टीकार्थ : एकद्रव्य में क्रम से होने वाले भावों को पर्याय विशेष कहा जाता है। जैसे आत्मा में हर्ष विषाद आदिक भाव। विशेषार्थ : यहाँ पर द्रव्य (आत्मद्रव्य अपने शरीर के प्रमाण मात्र ही है, न व्यापक है और न वटकणिकामात्र है और न शरीराकार से परिणत भूतों के समुदाय रूप है। अब विशेष के दूसरे भेद को बताते हैं - अर्थान्तरगतो विसदृशपरिणामो व्यतिरेको गोमहिषादिवत्॥१॥ सूत्रान्वय : अर्थ पदार्थ, अन्तर=एक की अपेक्षा दूसरे में, गतः =प्राप्त, विसदृशः = विसदृश, परिणामः = परिणाम, व्यतिरेक = व्यतिरेक, गो=गाय, महिषादि = भैसादि, वत् =समान। 130