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________________ स्थासादिषु = स्थास आदि पर्यायों में। सूत्रार्थ : पूर्व और उत्तर पर्यायों में रहने वाले द्रव्य को ऊर्ध्वता सामान्य कहते हैं। जैसे - स्थास, कोश, कुशूल आदि में मिट्टी रहती है। नोट : यहाँ सामान्य पद की अनुवृत्ति है। संस्कृतार्थ : परेऽपरे च ये विवस्तेिषु व्याप्नोति इति परापरविवर्तव्यापि। तथा च पूर्वोत्तरपर्यायव्यापकत्वे सति द्रव्यत्वं नाम ऊर्ध्वता सामान्यम्। यथा स्थासकोशकुशूलादिषु पर्यायेषु व्यापकत्वं मृत्तिका द्रव्यम्। . ___टीकार्थ : परेऽपरे च ये विवर्तास्तेषु व्याप्नोति इति परापरविवर्तव्यापि/ यहाँ पर द्वन्द्वगर्भा कर्मधारय समास है कि पर में और अपर में व्याप्य होकर रहने वाला परापर विवर्तव्यापि है और इसी तरह पूर्व और उत्तर पर्याय में व्यापकपने से होने पर द्रव्यपने का नाम ऊर्ध्वता सामान्य है। जैसे-स्थास, कोश, कुशूल आदि पर्यायों में व्यापकपना मिट्टी द्रव्य का है। 266. वह वस्तु क्या है ? द्रव्य। 267. वह द्रव्य कैसा है ? वह द्रव्य परापरविर्वतव्यापि इस विशेषण से विशिष्ट है। 268. परापरविर्वतव्यापि इस पद का क्या अर्थ है ? पूर्वोत्तर कालवी या त्रिकालवर्ती पर्यार्यों का अनुयायी। अब विशेष भी दो प्रकार का है, यह दिखलाते हैं - विशेषश्च // 6 // सूत्रान्वय : च = और, विशेष = विशेष। सूत्रार्थ : विशेष के भी पर्याय और व्यतिरेक दो भेद हैं। नोट : सूत्र में द्वेधा पद का अधिकार से सम्बन्ध किया गया है। संस्कृतार्थ : विशेषस्यापि द्वौ भेदौ विद्यते। टीकार्थ : विशेष के भी दो भेद हैं। 129
SR No.007147
Book TitleParikshamukham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandi Aacharya, Vivekanandsagar, Sandip
PublisherAnekant Gyanmandir Shodh Samsthan
Publication Year2011
Total Pages22
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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