________________ विशेषार्थ : अद्वैतवादी और सांख्य मतावलम्बी पदार्थ सामान्यात्मक ही मानते हैं। बौद्ध पदार्थ को विशेष रूप ही मानते हैं। नैयायिक वैशेषिक सामान्य को एक स्वतंत्र पदार्थ और विशेष को एक स्वतंत्र पदार्थ मानते हैं और उनका द्रव्य के साथ समवाय सम्बन्ध मानते हैं। इस प्रकार के विषयभूत पदार्थ के विषय में जो मतभेद हैं, उनके निराकरण के लिए सूत्र में सामान्य - विशेषात्मा ऐसा विशेषण पदार्थ के लिए दिया गया है। जिसका अभिप्राय यह है कि पदार्थ न केवल सामान्य रूप है, न केवल विशेष रूप है और न केवल स्वतंत्र उभय रूप है, अपितु उभयात्मक है। अब आचार्य भगवन् अनेकान्तात्मक वस्तु के समर्थन के लिए दो हेतु कहते हैं अनुवृत्तव्यावृत्तप्रत्ययगोचरत्वात् पूर्वोत्तराकारपरिहारावाप्ति स्थितिलक्षणपरिणामेनार्थक्रियोपपत्तेश्च // 2 // सूत्रान्वय : अनुवृत्त = अनुवृत्त, व्यावृत्त = व्यावृत्त, प्रत्यय = ज्ञान, गोचरत्वात् = विषय होने से, पूर्व =पहला, उत्तर = बाद का, आकार = आकृति, परिहार = निराकरण, अवाप्ति = प्राप्ति, स्थितिलक्षण =ध्रुवरूपता, परिणामेन = परिणाम के साथ, अर्थक्रिया =अर्थक्रिया की, उपपत्तेः =प्राप्ति होने से, च = और। सूत्रार्थ : वस्तु अनेकान्तात्मक है, क्योंकि वह अनुवृत्त और व्यावृत्त ज्ञान की विषय है तथा पूर्व आकार का परिहार और उत्तर आकार की प्राप्ति तथा स्थिति लक्षण परिणाम के साथ उसमें अर्थक्रिया पायी जाती है। संस्कृतार्थ : अनुवृत्ताकारो हि गौः गौः गौरित्यादिप्रत्ययः / व्यावृत्ताकारः श्यामः शबलः इत्यादि प्रत्ययः / पदार्थानां कार्यमर्थक्रिया। वस्तुतः पूर्वाकारविनाशः उत्तराकारावाप्तिश्चेत्युभयावस्थासहितस्थितिः परिणामः। अनुवृत्तञ्च व्यावृत्तञ्च तौ च तौ प्रत्ययौ, तयोः गोचरः तस्य भावस्तत्त्वं तस्मात् / पूर्वोत्तराकारयोः यथासंख्येन परिहारावाप्तिः ताभ्यां स्थितिः सैव लक्षणं यस्य सः चासौ परिणामश्च, तेनार्थक्रियायाः उपपत्तिः तस्याः / तथा च सादृश्य व्यावृत्तात्मकज्ञानविषयत्वात् पूर्वोत्तराकारपरित्याग प्राप्ति सहचरित ध्रौव्यलक्षण 126