________________ अथ प्रमाणविषय निर्णय अथ चतुर्थः परिच्छेदः प्रमाण के स्वरूप और संख्या की विप्रतिपत्ति का निराकरण करके आचार्य भगवन् अब विषय की विप्रतिपत्ति का निराकरण करने के लिए उत्तर सूत्र कहते सामान्यविशेषात्मा तदर्थो विषयः॥1॥ सूत्रान्वय : सामान्य =सामान्य, विशेष =विशेष, आत्मा स्वरूप, तदर्थः उस प्रमाण से गृहीत पदार्थ, विषयः = विषय। सूत्रार्थ : सामान्य और विशेष स्वरूप वस्तु प्रमाण का विषय है। संस्कृतार्थ : अनुगतप्रतीति विषयत्वं नाम सामान्यत्वम् / व्यावृत्तप्रतीति विषयत्वं नाम विशेषत्वम्, सामान्यं च विशेषश्चेति सामान्यविशेषौ, तौ आत्मानौ यस्य सः सामान्यविशेषात्मा, स तस्य प्रमाणस्य ग्राह्योऽर्थः इति तदर्थः / तथा च सामान्यविशेषोभयधर्मस्वरूपः प्रमाणग्राह्यः पदार्थः प्रमाण गोचरो भवतीति भावः। टीकार्थ : अनुगत (साथ -साथ रहने वालों में) ज्ञान के विषयपने का नाम सामान्य है। व्यावृत्त (यह उससे भिन्न है) ज्ञान के विषयपने का नाम विशेष है। सामान्यं च विशेषश्चेति सामान्यविशेषौ (यहाँ द्वन्द्व समास है) सामान्य और विशेष वे दोनों हैं आत्मा जिसकी वह सामान्यविशेषात्मा (यहाँ बहुब्रीहि समास है) उस प्रमाण के ग्राह्य अर्थ को तदर्थ कहते हैं और उसी प्रकार सामान्य और विशेष उभय धर्म स्वरूप पदार्थ प्रमाण से ग्राम है अतः प्रमाण का विषय होता है, यह भाव है। 263. इस सूत्र में विशेषण विशेष्य कौन है ? सामान्यविशेषात्मक = विशेषण, विशेष्य - पदार्थ। 264. इस सूत्र में तीन पदों का ग्रहण क्यों किया गया है ? केवल सामान्य, केवल विशेष और स्वतंत्र सामान्य विशेष की प्रमाण विषयता के प्रतिषेध के लिए है। 125