________________ टीकार्थ : जहाँ जो अवञ्चक है, वह वहाँ आप्त है, आप्त का वचन आप्त वचन है। आदि शब्द से अंगुली आदि के संकेत ग्रहण करना चाहिए। आप्त के वचनादि जिस अर्थज्ञान के कारण हैं, वह आगम प्रमाण है। आप्त शब्द के ग्रहण से अपौरुषेय वेद का निराकरण किया जाता है। अर्थज्ञान इस पद से अन्यापोह ज्ञान का तथा अभिप्राय के सूचक शब्द सन्दर्भ का निराकरण किया गया है। अर्थज्ञान आगम है, यह कहने पर प्रत्यक्षादि में अति व्याप्ति हो जायेगी। अतः उसके परिहार के लिए वाक्य निबन्धनम् कहा गया है। वाक्य निबन्धनम् अर्थज्ञान आगम है, ऐसा कहने पर भी अपनी इच्छा से कुछ भी बोलने वाले, ठगने वाले लोगों के वाक्य, सोए हुए तथा उन्मत्त पुरुषों के वचनों से उत्पन्न होने वाले अर्थज्ञान में लक्षण के चले जाने से अतिव्याप्ति दोष हो जायेगा। अतः उसके निराकरणार्थ अर्थ विशेषण दिया है। आप्त वचन जिसमें कारण है ऐसा अर्थज्ञान आगम है, ऐसा कहे जाने पर परार्थानुमान में अति व्याप्ति हो जायेगी, अतः उसका परिहार करने के लिए आदि पद ग्रहण किया है। नोट : सूत्र में आदि शब्द से अंगुली आदि का संकेत ग्रहण करना है। वचन या शब्द से वास्तविक अर्थबोध होने का कारण - सहजयोग्यतासंकेतवशाद्धि शब्दादयो वस्तुप्रतिपत्तिहेतवः॥96॥ सूत्रान्वय : सहजयोग्यता = स्वभावभूत योग्यता के होने पर, संकेतवशात् = संकेत के वश से, शब्दादयः = शब्दादि, वस्तु = वस्तु, प्रतिपत्ति = ज्ञान कराने के लिए, हेतवः = कारण है, हि = क्योंकि। सूत्रार्थ : सहज योग्यता के होने पर संकेत के वश से शब्दादि वस्तु का ज्ञान कराने के कारण हैं। . संस्कृतार्थ : सहजा स्वभाव संभूता, योग्यता शब्दार्थयोर्वाच्यवाचक शक्तिः तस्याम् संकेतस्तस्य वशस्तस्मात् तथा च शब्दार्थ निष्ठावाच्य-वाचक शक्तिसंकेत ग्रहण निमित्तेन शब्दादयः स्पष्टरीत्या पदार्थ ज्ञानं जनयन्ति इति भावः। 122