________________ टीकार्थ : सहजा स्वभावभूता योग्यता शब्द और अर्थ की वाच्यवाचक भावरूप शक्ति उसके होने पर संकेत के वश से और उसी प्रकार अर्थों में वाच्य रूप तथा शब्दों में वाचक रूप एक स्वाभाविक योग्यता होती है, जिसमें संकेत हो जाने से ही शब्दादिक स्पष्ट रूप से पदार्थ ज्ञान को उत्पन्न करने में कारण होते हैं यह भाव है। .. विशेष : शब्द और अर्थ की वाच्य-वाचक भाव रूप शक्ति, उसके होने पर संकेत के वश से स्पष्ट रूप से पहले कहे गए शब्दादिक वस्तु का ज्ञान कराने में कारण होते हैं। अब शब्दार्थ से अर्थ अवबोध होने का दृष्टान्त देते हैं - यथा मेादयः सन्ति॥ 97 // सूत्रान्वय : यथा = जैसे, मेरु= सुमेरुपर्वत, आदयः = आदिक, सन्ति = हैं। सूत्रार्थ : जैसे मेरुपर्वतादिक हैं। संस्कृतार्थ : यथा मेर्वादयः सन्तीत्यादि वाक्यश्रवणात् सहजयोग्यता श्रयेण हेमाद्रि प्रभृतीनां बोधो जायते तथैव सर्वत्र शब्दादर्थावबोधो जायते। टीकार्थ : जैसे मेरुपर्वत आदिक होते हैं, इस प्रकार का वाक्य सुनने से सहज योग्यता के आश्रय से हेम आदि पर्वतों का ज्ञान होता है उसी प्रकार ही सभी जगह शब्द से पदार्थों का ज्ञान हो जाता है। इति तृतीयः परिच्छेदः समाप्त: (इस प्रकार तीसरा परिच्छेद पूर्ण हुआ) 123