________________ सूत्रार्थ : साधन से व्याप्त साध्य रूप आधार की सूचना के लिए पक्ष कहा जाता है। संस्कृतार्थ : साध्याविनाभाविनो हेतोः प्रयोगादेव साध्यसिद्धिः जायते अतस्तस्य हेतोः आधारदर्शनार्थमेव पक्षप्रयोगः आवश्यकः / . टीकार्थ : जब साध्य के बिना नहीं होने वाले हेतु के प्रयोग से ही साध्य की सिद्धि हो जाती है, तब उस हेतु (साधन) का स्थान दिखाने के लिए पक्ष का प्रयोग करना आवश्यक है। विशेष : जो पुरुष साध्य व्याप्त साधन को नहीं जानते हैं, उनके लिए विज्ञजन दृष्टान्त से तद्भाव को या हेतु भाव को कहते हैं। किन्तु विद्वानों के लिए तो केवल एक हेतु ही कहना चाहिए। इस प्रकार अनुमान के स्वरूप का प्रतिपादन करके अब आचार्य भगवन् क्रम प्राप्त आगम के स्वरूप का निरुपण करने के लिए सूत्र कहते हैं - आप्तवचनादिनिबन्धनमर्थज्ञानमागमः॥95॥ सूत्रान्वय : आप्तवचनादि = आप्त के वचन आदि के, निबन्धनम् = निमित्त से होने वाले, अर्थज्ञानम् = पदार्थ ज्ञान को, आगमः = आगम। सूत्रार्थ : आप्त के वचनादि के निमित्त से होने वाले अर्थज्ञान को आगम कहते हैं। ___संस्कृतार्थ : यो यत्रावञ्चकः स तत्राप्तः / आप्तस्य वचनम् आप्त वचनम् / आदिशब्देनाङ्गुल्यादिसंज्ञापरिग्रहः / आप्तवचनमादिर्यस्य तत् तथोक्तम्। आप्तवचनादि निबन्धनं कारणं यस्य तत् तथोक्तम् / तथाचाप्तवचनादिकारणत्वे सति अर्थज्ञानत्वं नाम आगमत्वमिति। अर्थज्ञानमित्येतावदुच्यमाने प्रत्यक्षादावतिव्याप्तिः। अत उक्तं वाक्यनिबन्धनमिति। वाक्यनिबन्धनमर्थज्ञानामागमः इत्युच्चमानेऽपि यादृच्छिकसम्भावादिषु विप्रलम्भजन्यवाक्येषु सुप्तोन्मत्तादिजन्यवाक्येषु वा नदीतीरफलसंसर्गादिज्ञानेषु अतिव्याप्तिः अत उक्तम् आप्तेति। आप्तवाक्य निबन्धनज्ञानमित्युच्चमानेऽपि आप्तवाक्यकर्मके श्रावणप्रत्यक्षेऽतिव्याप्तिः अतः उक्तमर्थेति। 121